- न तु केनचिदत्यंतं कस्यचिद्हृदयं क्वचिद् वेदितुं शक्यते।[1]
कोई किसी दूसरे के हृदय को कभी पूर्णरूप से नहीं जान सकता।
- क्षुद्रं हृदयदौर्बल्यं त्यक्त्वोतिष्ठा।[2]
हृदय की तुच्छ दुर्बलता को त्यागकर खड़े हो।
- हृदयं प्रियाप्रिये वेद।[3]
प्रिय और अप्रिय को हृदय जानता है।