- धनमाहु: परं धर्म धने सर्वं प्रतिष्ठितम्।[1]
धन ही परम धर्म है सबकुछ धन में ही स्थित है।
- धत्ते धारयते चेदमेतस्मात् कारणाद्धनम्।[2]
जो संसार को धारण करता और करवाता है इसलिये धन कहलाता है।
- आयसं हृदयं कृत्वा मृगयस्व पुन: स्वकम्।[3]
लोहे का हृदय बनाकर अपना गया हुआ धन पुन: खोजो।
- धर्म संहरते तस्य धनं हरित यस्य स:।[4]
जो जिसका धन छीन लेता है वह उसके धर्म हो भी हर लेता है।
- सर्वथा धनमाहार्यम्।[5]
सब प्रकार से धन कमाना चाहिये।
- न पश्यामोऽनपकृतं धनं किंचिद् क्वचिद् वयम्।[6]
किसी का अपकार किये बिना कहीं किसी के पास धन हमने नहीं देखा।
- संविभज्य च भोक्तव्यं धनं सद्भिरितीर्यते।[7]
सज्जनों का कहना है कि धन का उपभोग बाँट कर करना चाहिये।
- अनवाप्तं च लिप्सेत लब्धं च परिपालयेत्।[8]
अप्राप्त वस्तु को पाने की इच्छा करे और जो प्राप्त है उसकी रक्षा करे।
- धनात् स्रवति धर्म:।[9]
धन से धर्म किया जाता है।
- धनेन बलवान् भवेत्।[10]
धन से मनुष्य बलवान् हो जाता है।
- तरेद् द्रव्येण चापदम्।[11]
धन से संकट को पार करे।
- आशया सिंचितं द्रव्यं दु:खेनैवोपभुज्यते।[12]
आशा से एकत्र किया गया धन कठिनता से उपभोग में लाया जाता है।
- न चैवाविहितं शक्यं दक्षेणापीहितुं धनम्।[13]
बिना भाग्य के कुशल मनुष्य भी धन नहीं पा सकता।
- नैकोश्नीयात् कंथचं।[14]
धन का उपभोग कभी अकेला व्यक्ति न करे।
- अतिरिक्तै: संविभजेद् भोगैरन्यानकिंचनान्।[15]
अपने उपभोग से बचे हुये धन को निर्धनों को बाँट दे।
- धनानामेष वै पंथास्तीर्थेषु प्रतिपादनम्।[16]
धर्म के उपभोग का सबसे अच्छा मार्ग है सत्पात्र को दान देन।
- प्राणसंतापनिद्रिष्टा: काकिण्योऽपि महाफला:।[17]
शरीर को कष्ट देकर कमाई गई कौडियाँ भी महान् फल देती हैं
- मृतं च यन्न मुञ्चति समर्जस्व तद् धनम्।[18]
वह धन कमाओ जो मरने पर भी साथ नहीं छोड़ता।
- धनेन किं यन्न ददाति नाश्नुते।[19]
ऐसे धन से क्या लाभ जो न भोग के काम आये न दान के।
- अधर्ममूलैर्हि धनैस्तैर्न धर्मोऽथ कश्चं।[20]
अधर्म से प्राप्त किये गये धन से किये गये धर्म का कोई फल नहीं होता
- न वृथा साधयेद् धनम्।[21]
व्यर्थ में धन संग्रह न करे।
- हितायैव भविष्यति रक्षितंं द्रविणम्।[22]
सुरक्षित रखा गया धन अपने हित के ही काम आयेगा।
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ उद्योगपर्व महाभारत 72.23
- ↑ उद्योगपर्व महाभारत 114.2
- ↑ उद्योगपर्व महाभारत 133.34
- ↑ शांतिपर्व महाभारत 8.13
- ↑ शांतिपर्व महाभारत 8.27
- ↑ शांतिपर्व महाभारत 8.30
- ↑ शांतिपर्व महाभारत 60.11
- ↑ शांतिपर्व महाभारत 69.102
- ↑ शांतिपर्व महाभारत 90.18
- ↑ शांतिपर्व महाभारत 130.49
- ↑ शांतिपर्व महाभारत 131.6
- ↑ शांतिपर्व महाभारत 139.30
- ↑ शांतिपर्व महाभारत 177.9
- ↑ शांतिपर्व महाभारत 234.12
- ↑ शांतिपर्व महाभारत 259.23
- ↑ शांतिपर्व महाभारत 270.5
- ↑ शांतिपर्व महाभारत 293.16
- ↑ शांतिपर्व महाभारत 321.46
- ↑ शांतिपर्व महाभारत 321.93
- ↑ अनुशासनपर्व महाभारत 45.23
- ↑ अनुशासनपर्व महाभारत 47.22
- ↑ आश्रमवासिकपर्व महाभारत 5.13
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