अनुबन्ध (महाभारत संदर्भ)

  • को वा समयभेत्तारं बुध: सम्मंतुमर्हति। [1][2]

अनुबंध का पालन न करने वाले का कौन बुद्धिमान सम्मान करेगा?

  • विश्वासं समयघ्नानां न यूयं गंतुमर्हथ।[3]

तुम्हें अनुबंध तोड़ने वालों का विश्वास नहीं करना चाहिये।

  • नाभीत: पुरुष: कश्चित् समये स्थातुमिच्छति।[4]

बिना भय के कोई अनुबंध का पालन नहीं करना चाहता।


टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. शल्यपर्व महाभारत.64.14
  2. महाभारत सूक्तिकोश |लेखक: सोमदेव गिरि |प्रकाशक: दिव्य प्रकाशन, पतंजलि योगपीठ, हरिद्वार, उत्तराखण्ड |संकलन: भारत डिस्कवरी पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 18 |
  3. शल्यपर्व महाभारत.64.30
  4. शांतिपर्व महाभारत.15.13

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