भूख (महाभारत संदर्भ)

  • भूतानि पीड्यंते क्षुधया भृशम्।[1]

भूख के द्वारा प्राणी अत्यंत पीड़ित किये जाते हैं।

  • क्षुद् धर्मसंज्ञा प्रणुदत्यादत्ते धैर्यमेव च।[2]

भूख धर्म के ज्ञान को लुप्त कर देती है और धैर्य को मिटा देती है।

  • क्षुत् स्वादुतां जनयति।[3]

भूख भोजन में स्वाद उत्पन्न कर देती है।

  • अपहन्यात् क्षुधां यस्तु न तेन पुरुष: सम:।[4]

जो किसी की भी भूख मिटा देता है उसके समान कोई पुरुष नहीं है।

  • बालानां क्षुद् बलवती।[5]

बालकों को भूख अधिक लगती है।

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. वनपर्व महाभारत 3.5
  2. वनपर्व महाभारत 260.24
  3. उद्योगपर्व महाभारत 34.50
  4. अनुशासनपर्व महाभारत 59.11
  5. आश्वमेधिकपर्व महाभारत 80.60

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