यौवन (महाभारत संदर्भ)

  • पूर्वे वयसि तत् उर्याद् येन वृद्ध: सुखं वसेत्।[1]

यौवन में ऐसा कर्म करना चाहिये जिससे अन्तिम समय में सुख से रहें।

  • अन्यया यौवने मर्त्यो बुद्ध्या भवति मोहित:।[2]

यौवन में मनुष्य किसी और ही बुद्धि से सम्मोहित रहता है।

  • युवैव धर्मशील: स्यादनित्यं खलु जीवितम्।[3]

युवावस्था में ही धर्म में लग जायें, जीवन का पता नहीं, कब तक है।

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. उद्योगपर्व महाभारत 35.68
  2. सौप्तिकपर्व महाभारत 3.11
  3. शांतिपर्व महाभारत 175.16

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