दक्ष (महाभारत संदर्भ)

  • दक्षा: प्राप्यो हितैषिण:।[1]

कार्य कुशल लोग प्राय: हित चाहते हैं।

  • दंक्ष: स्यान्न त्वकालिवित्।[2]

कार्यकुशल हो परंतु अवसर का भी जानने वाला हो।

  • भूतिस्त्वेवं श्रिया सार्धं दक्षे वसति नालसे।[3]

धन और उसका उपभोग कुशल मनुष्य को मिलते हैं आलसी को नहीं।

  • न चैवाविहितं शक्यं दक्षेणापीहितुं धनम्।[4]

बिना भाग्य के कुशल मनुष्य भी धन नहीं पा सकत।

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. सौप्तिकपर्व महाभारत 2.15
  2. शांतिपर्व महाभारत 70.10
  3. शांतिपर्व महाभारत 174.38
  4. शांतिपर्व महाभारत 177.9

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