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श्रीमद्भागवत प्रवचन -स्वामी तेजोमयानन्द
1.अवतार की प्रस्तावना
राजा परीक्षित शुकदेव जी से कहते हैं- आपने सभी राजाओं के वंशों का वर्णन किया। सभी कथाओं को आपने संक्षेप में सुनाया, सो तो ठीक है। परन्तु यदुवंश में भगवान भूत-भावन विश्वात्मा प्रकट हुए थे, उनकी कथा आप विस्तार से सुनाइए। ऐसा क्यों? क्योंकि ये वे ही भगवान कृष्ण हैं जिन्होंने गर्भ में इनकी रक्षा की थी। भगवान श्रीकृष्ण का अनुग्रह सदा ही इनके वंश पर रहा है। इनके यहाँ भगवान ने सेवा का कार्य भी किया था। कहते हैं-
पशु हत्यारे के अतिरिक्त ऐसा कौन व्यक्ति होगा जिसे भगवत् कथा में रस न आए और उसे सुनना न चाहे?
माया से जो मनुष्य रूप में यहाँ आए, उन भगवान का चरित्र आप विस्तार से सुनाइए। मैं सुनने के लिए आतुर हूँ।
आपके मुख से निकले इस भगवत् कथामृत का पान कर मुझे भूख और प्यास बिल्कुल नहीं सताती है। मैं थकने वाला भी नहीं हूँ, आप विस्तार से सुनाइए। ऐसी बात जब परीक्षित के मुख से सुनी, तो भगवान शुकदेवजी कहते हैं- अरे राजर्षि ‘सम्यक् व्यवसिता बुद्धि तव’ तुम्हारी बुद्धि बड़ी अच्छी है क्योंकि भगवान की कथा में तुम्हें ऐसी नैष्ठिक रति हो गई है। यहाँ उन्होंने एक बड़ी अच्छी बात कही कि ‘वासुदेवकथाप्रश्नः’ भगवत्कथा सम्बन्धी जो प्रश्न हैं वह सभी पुरुषों को, स्त्रियों को, ‘वक्तारं पृच्छकं’ वक्ता को, प्रश्न पूछने वाले को, श्रोताओं को, सबको उसी प्रकार पवित्र करता है- ‘तत्पादसलिलं यथा’। जिस प्रकार भगवान के चरणों से निकली हुई गंगाजी सबको पवित्र करती है। भगवत्कथा की महिमा तो उससे भी ज्यादा है, क्योंकि वह भगवद्धर्म की कथा है। वह कोई सामान्य धर्म नहीं है जो हमारे स्वभाव में यत्किंचित् परिवर्तन लाए या पापों को केवल क्षीण करे। वह तो पापों को पूर्णतः नष्ट करके भगवान में नैष्ठिकी रति उत्पन्न करने वाली है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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