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श्रीमद्भागवत प्रवचन -स्वामी तेजोमयानन्द
24.कालिय नाग का दमन
फिर, एक दिन बलराम जी को लिए बिना ही भगवान अपने सखा ग्वालबालों के साथ यमुना जी के तट पर पहुँचे। जेठ-आषाढ़ की गर्मी से त्रस्त होकर ग्वालबाल, गौओं तथा बछड़ों ने यमुना जी का जल पी लिया, जो जहरीला हो गया था। देखते-देखते सब-के-सब मर गये। लेकिन भगवान ने अपनी कृपादृष्टि से सारा विष उतार दिया और उन्हें फिर-से जीवित कर दिया। यमुना जी का जल विषैला क्यों हो रहा था? इसलिए कि उसमें कालिय नाग आकर रहने लगा था। वह जहाँ रहता था-उस कालिय हृद (कुण्ड) का जल इतना विषैला हो गया था कि विष की गर्मी से खौलता रहता था। यह कालिय नाग इन्द्रिय रूप है। जैसे उसके बहुत सारे फन होते हैं, वैस ही इन्द्रियों की भी असंख्य प्रवृत्तियाँ होती हैं जो हमारे अन्तःकरण को विषैली करती रहती हैं। भगवान ने जब देखा कि जल विषैला हो गया है, किसी के काम का नहीं रहा, तो उन्होंने निश्चय किया कि अब मुझे इसमें प्रविष्ट होकर इस नाग को बाहर निकाल डालना चाहिए। ऐसा निश्चय करके, पास के एक ऊँचे कदम्ब के वृक्ष पर चढ़कर ‘न्यपतद् विषोदे’ श्रीकृष्ण कालिन्दी के उस कालियदह में कूद पड़ें सारे बाल-गोपाल भी वही थे, उनके देखते-देखते ये सहसा यमुना जी में कूद पड़े। और वहाँ पहुँच कर जल को उछालने की क्रीड़ा करने लगे। कालिय नाग ने आवाज सुनी तो वह चिढ़ कर सामने आ गया परन्तु सामने खड़े अति सुन्दर सुकुमार मनोहारी श्यामवर्ण के बालक को वह देखता ही रहा गया, परन्तु उन्हें निःशंक देखकर उसका क्रोध और भी बढ़ गया। उसने भगवान को अपने पाश में बाँध लिया। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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