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श्रीमद्भागवत प्रवचन -स्वामी तेजोमयानन्द
64.श्रीकृष्ण-जाम्बवती-विवाह
मणि का पता लगाने के लिए वे प्रसेन को ढूँढने निकल पड़े। प्रसेन को ढूँढते-ढूँढते भगवान एक गुफा में पहुँचे जहाँ जाम्बवान जी उस मणि को लिए बैठे थे। जाम्बवान जी, जो देवताओं के अंश हैं, वे वामन अवतार के समय से वहीं थे। रामावतार के समय उन्होंने श्री रामचन्द्र जी का साथ दिया था। अब कृष्णावतार के समय भी वे वहाँ एक गुफा में रहते थे। श्रीकृष्ण के साथ जाम्बवान की अठ्ठाइस दिनों तक लड़ाई हुई, जिसके पश्चात जाम्बवान जी ने उन्हें पहचान लिया। मणि के साथ-साथ उन्होंने अपनी कन्या जाम्बवती को भी भगवान को दे दिया। इस प्रकार भगवान का दूसरा विवाह जाम्बवती के साथ हुआ। 65.श्रीकृष्ण-सत्यभामा-विवाहवहाँ से लौटकर भगवान ने सत्राजित से कहा कि देखो, इसे (मणि को) चुराकर मैं नहीं ले गया था। फिर पूरी घटना सुनाकर वह मणि उन्होंने सत्राजित को दे दी। सत्राजित बड़ा लज्जित हुआ। फिर अन्ततः उसने भी अपनी कन्या सत्यभामा सहित वह मणि भगवान को सौंप दी। परन्तु भगवान ने कहा, “सूर्य भगवान से प्राप्त इस मणि को तुम अपने पास ही रखना, हमें बस उसका फल (आठ भार सोना) दे दिया करना।” तब भगवान का तीसरा विवाह हुआ सत्राजित की कन्या सत्यभामा के साथ। इसका अभिप्राय यह है कि मनुष्य को कर्मरूपी साधन करना चाहिये लेकिन उसका फल भगवान को अर्पित करना चाहिये। इसके बाद श्रीकृष्ण तथा बलराम जी को हस्तिनापुर जाना पड़ा। तब, अक्रूर जी तथा कृतवर्मा के बहकावे में आकर शतधन्वा ने सत्राजित को मार कर वह मणि ले ली। सत्यभामा को जब पता चला, तो वे हस्तिनापुर पहुँच गईं और उन्होंने श्रीकृष्ण तथा बलरामजी को अपने पिता की हत्या के विषय में सारी बातें कह सुनाई। तब वे सब द्वारका लौट आए। उसके भय से शतधन्वा ने अक्रूरजी तथा कृतवर्मा दोनों से सहायता माँगी, पर उन दोनों ने ही उसकी सहायता करने से मना कर दिया। तब शतधन्वा उस मणि को अक्रूर जी के पास फेंक कर घोड़े पर सवार हो कर भाग चला। श्रीकृष्ण बलराम उसके पीछे गए और अन्ततः भगवान ने अपने चक्र से उसका सिर काट डाला, लेकिन वह मणि उसके पास नहीं मिली। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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