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श्रीमद्भागवत प्रवचन -स्वामी तेजोमयानन्द
5.वृत्रासुर के वध के लिए देवताओं द्वारा दधीचि ऋषि से अस्थियाँ माँगना
वृत्रासुर इतना भयंकर था कि उसकी वजह से सारे-के-सारे देवता लोग व्याकुल हो गए कि अब इसको कैसे मारें? भगवान के आदेशानुसार देवता लोग दधीचि ऋषि के पास गए। भगवान ने कहा था कि दधीचि ऋषि बड़े तपस्वी हैं। वे अपनी अस्थियाँ तुमको दे देंगे। उनसे तुम जो वज्र बनाओगे, अस्त्र बनाओगे, उसी के द्वारा वृत्रासुर का नाश हो सकता है। देवताओं को देखकर दधीचि ऋषि कहते हैं, आप कैसे आए? तो देवता कहते हैं कि महाराज हमारे ऊपर संकट आया है। हमें कहते हुए भी संकोच होता है, लेकिन हमें आपकी अस्थियाँ चाहिए। और कहते हैं, ”आप तो ब्रह्मज्ञानी हैं, आपको ज्ञान हो गया है कि आप देह नहीं हैं। आप देह नहीं है तो इस देह की अस्थियाँ किसी और को दे दें, तो क्या अन्तर पड़ता है? लोग बोलते हैं हम स्वार्थी हैं हमको किसी का दुःख नहीं दिखाई देता। आप संत हैं। आपको हमारा दुःख अवश्य दिखाई देगा।“ देखा? देवता कैसे हैं और क्या बोल रहे हैं।
यह जगत बड़ा स्वार्थी है। दधीचि ऋषि हँसते हैं और कहते हैं, ”तुम जो बात कहते हो, वह सही है। आखिर जीने का लाभ क्या है?“
”संसार बड़ा धर्म यही है कि हमारा यह जीवन किसी के, या समष्टि के काम आता हो, तो पीछे नहीं हटना चाहिए। इसलिए मैं अपना देह त्यागने के लिए तैयार हूँ।“ दधीचि ऋषि का त्याग बड़ा प्रसिद्ध है। वे ब्रह्म समाधि में चले गए। देह त्याग हो गया। उनकी हड्डियों से वज्र बनाकर इन्द्र देव वृत्रासुर के साथ युद्ध करने के लिए खड़े हो जाते हैं। वृत्रासुर बड़ा भयंकर युद्ध करता है। पर उसकी सेना भागने लगती है। वह उनसे कहता है, तुम भागते कहाँ हो? एक बार युद्ध में आए हो तो मर जाओ। लेकिन सेना मानती नहीं है। वह देवताओं को डाँटने लग जाता है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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