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श्रीमद्भागवत प्रवचन -स्वामी तेजोमयानन्द
6.प्रह्लाद द्वारा असुर-बालकों को शिक्षा
अब प्रह्लाद की शक्ति देखी तो साथ में पढ़ने वाले सारे असुर बालकों केा बड़ा आश्चर्य हुआ कि प्रह्लाद में कितनी शक्ति है। वे उनके आदर के पात्र बन गये। एक दिन शण्डामर्क गृहकार्य से कहीं बाहर गए थे तो प्रह्लाद के साथियों ने देखा कि गुरुजन तो हैं नहीं। तब उन्होंने प्रह्लाद को बीच में बिठाया और स्वयं वे सब उनके आस-पास बैठ गए। वे प्रह्लाद से कहते हैं - अरे प्रह्लाद तुम में इतनी शक्ति है, इतना ज्ञान है, इतनी भक्ति है, उस ज्ञान का थोड़ा-सा उपदेश हमको भी कर दो न! देखो, सत्संग का कैसा प्रभाव होता है। प्रह्लाद ने आज तक उनके साथ ऐसी कोई बात की ही नहीं थी। हमसे लोग प्रायः पूछते रहते हैं कि हम अपने बच्चों को संस्कार कैसे दें? समाज को कैसे सुधारें? तुम सुधरो बस! बाकी सब ठीक हो जाएगा। हम तो सिर्फ दूसरों को सुधारने की बात ही करते रहते हैं। देखो, प्रह्लाद ने तो किसी को उपदेश नहीं दिया था। लेकिन उनकी शक्ति देखकर सारे असुर बालक स्वयं ही प्रभावित हुए और उनसे कहते हैं कि थोड़ा ज्ञान हमको भी दो। अब देखो, छोटे-से बालक प्रह्लाद जी वहाँ बैठे हैं। दूसरे सब भी बालक ही हैं। बालक बालकों को पढ़ा रहा है। क्या दृश्य है! देखो पहली बाल-विहार की कक्षा तभी से शुरू हुई। आज हमारे चिन्मय मिशन में जो बाल-विहार होता है उसमें भी बच्चों को संस्कार देने की कक्षाएँ चलती हैं। तो प्रथम बाल-विहार के आचार्य प्रह्लाद जी हैं। यह सब उन्होंने ही शुरू किया। बालक ने बालकों को सिखाना शुरू किया। और देखो बात क्या कही है? ऐसी बात कही कि वह बड़े लोगों के लिए भी विचार करने योग्य है। उन्होंने कहा -
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ 7.6.1
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