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श्रीमद्भागवत प्रवचन -स्वामी तेजोमयानन्द
2.भगवान अजित से ब्रह्माजी की प्रार्थना
शुकदेव जी कहते हैं- एक बार दुर्वासा ऋषि देवताओं पर नाराज हो गये, और उन्होंने देवताओं को शाप दे दिया। तब सारे देवता शक्तिहीन हो गये। असुरों को अच्छा अवसर मिल गया। उन्होंने देवताओं पर आक्रमण कर दिया और वे विजयी होने लगे। सारे देवता दुःखी हो गये कि अब क्या करें? वे सब मिलकर अपने स्वामी ब्रह्मा जी के पास गए और उन्हें अपना दुःख-कष्ट सुनाया। फिर उनसे कहा कि आप कुछ कीजिये। अब बात ऐसी है कि ये ब्रह्मा जी कभी किसी का संकट दूर नहीं कर पाते। कभी किसी को, तो कभी किसी और को, वर अवश्य देते रहते हैं लेकिन वे किसी का संकट दूर नहीं कर पाते। यहाँ ब्रह्माजी ने देवताओं से कहा- चलो, नारायण भगवान के पास चलते हैं। वे ही सबसे बड़े हैं। देखो भगवान आराम से सोते रहते हैं, ये ब्रह्मा जी आदि उन्हें जगाते रहते हैं।
तब सबको साथ लेकर ब्रह्माजी भगवान की स्तुति करने लगे। कहते हैं, ”भगवान! हम आपकी शरण में आये हैं। आप तो शान्त स्वभाव के हैं। अपने स्वरूप में स्थित रहते हैं। आपको किसी बात से न दुःख होता है न सुख, लेकिन हम तो दुःख में पड़े हुये हैं। आप हमारे दुःख को दूर कीजिये। “प्रसन्न होकर भगवान जब वहाँ प्रकट हुये, तो सारे देवताओं की आँखें अपने आप बंद हो गईं। वे सब उन्हें देख नहीं पाए क्योंकि भगवान का तेज हजारों सूर्यों के तेज के समान है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ 8.5.44
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