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श्रीमद्भागवत प्रवचन -स्वामी तेजोमयानन्द
12.सप्तम प्रश्न - अवतारों की कथा
राजा निमि कहते हैं- भगवन आपने कहा कि आपके निर्देशानुसार कर्मयोग का पालन करने से अन्ततः भगवान की प्राप्ति हो जाएगी। आपने मुझे भगवान का निर्गुण स्वरूप तो बता दिया। लेकिन आप सदा यह भी कहते रहते हैं कि हमें भगवद्भक्ति करनी चाहिए और आपने ऐसा भी कहा है कि जब-जब धर्म का ह्रास होता है और अधर्म बहुत बढ़ जाता है तब-तब धर्म संस्थापना के लिए भगवान स्वयं अवतार ग्रहण करते हैं। अब जरा आप मुझे उन अवतारों की कथा भी सुना दीजिए। वे कौन-सी लीलाएँ हैं जिन्हें वे अब तक कर चुके हैं, कर रहे हैं और आगे करने वाले हैं, यह भी बता दीजिए, जिससे कि भगवान की कथा सुनते-सुनते हमारा मन शुद्ध हो जाए, एकाग्र हो जाए। मन में भाव उत्पन्न हो जाए। मन में भाव उत्पन्न होगा तो उनसे प्रेम हो जाएगा और तब सहज ही हम अपने सारे कर्म उन्हें ही अर्पित कर सकेंगे। तब फिर उनके स्वरूप का बोध भी हो जाएगा। अतः अब आप भगवान की सगुण लीलाओं का वर्णन कीजिए।
“सम्भव है किसी तरह तुम उन्हें गिन लो, समुद्र में पानी की बूँदें कितनी हैं सम्भव है तुम यह भी गिन सको, लेकिन भगवान के अवतार, जन्म, कर्म, लीला और गुणों को कभी गिना नहीं जा सकता!”
यदि कोई यह कहता है कि मैं भगवान के सभी गुणों का वर्णन कर सकता हूँ, तो समझ लो वह अभी नासमझ बच्चा ही है। मैं तुम्हें संक्षेप में कुछ बातें बता देता हूँ। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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