विषय सूची
श्रीमद्भागवत प्रवचन -स्वामी तेजोमयानन्द
11.ब्रह्मचर्याश्रम
आगे ब्रह्मचारी का धर्म बताया गया कि वह गुरुकुल में रहे, गुरु की सेवा करे, भिक्षा माँगकर लाए और यदि गुरु जी उस भिक्षा में से कुछ भाग दें, तो खा ले, नहीं तो उपवास करे। ऐसा यहाँ स्पष्ट लिखा है।
अपने शरीर के सौन्दर्य की ओर ध्यान न दे, दुःसंग का त्याग करे, इन्द्रियों पर संयम रखकर जगत का वास्तविक स्वरूप क्या है, उसे समझे। यह जगत वैसे तो मिथ्या है, लेकिन मिथ्या समझकर वह चाहे जैसा व्यवहार न किया करे। और जब उसे ज्ञान की सम्यक् प्राप्ति हो जाए तब गुरु को प्रिय दक्षिणा दे। उसके बाद, अपने संस्कारों के अनुरूप वह चाहे ब्रह्मचर्य आश्रम में ही रहे या गुरु की अनुमति लेकर विरक्त होकर फिर संन्यास ग्रहण करे या फिर वह गृहस्थ आश्रम में भी प्रवेश कर सकता है, लेकिन उसके लिए भी गुरु की अनुमति लेना आवश्यक है।
जीवन में पहले जगत के सत्य को समझें, जीवन की सारी अवस्थाओं को समझें, सामान्य धर्म तथा विशेष धर्म को भी समझें, उसके बाद ही तब जीवन के अगले चरण में प्रवेश करें। इस प्रकार यहाँ ब्रह्मचर्य आश्रम का वर्णन किया गया है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
क्रमांक | विवरण | पृष्ठ संख्या |