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श्रीमद्भागवत प्रवचन -स्वामी तेजोमयानन्द
8.भगवद्दर्शन प्राप्त करके ध्रुव जी का घर लौटना
उधरा राजा उत्तानपाद को किसी ने यह समाचार दिया। लेकिन उसे इस बात पर विश्वास नहीं हो रहा था। तब नारद जी आकर उनसे कहते हैं - तुम्हारा लड़का वापस आ रहा है। सुन कर राजा उत्तानपाद दौड़ पड़े। सुरुचि और सुनीति भी निकल पड़ीं। सौतेली माँ सुरुचि समझ गयी कि भले ही यह छोटा सा है, अभी बालक है, परन्तु है बड़ा तेजस्वी। तुलसी रामायण में चौपाई आती है - ‘तेजवन्त लघु गनिय न रानी’। तेजस्वी पुरुष को छोटा नहीं मानना चाहिए, भले ही वह दिखने में या आयु में छोटा हो। उसका सौतेला भाई है उत्तम। वह भी दौड़ता जा रहा है। सब-के-सब मिलने के लिए जाते हैं। ‘ध्रुव जी स्वयं तो बहुत ज्यादा प्रसन्न नहीं हैं। लेकिन सबको लगता है कि ये भगवान के दर्शन स्पर्शन करके आ रहे हैं। उत्तानपाद राजा उनकी चरण धूलि अपने मस्तक पर लगा कर फिर उनको गले लगाते हैं। सोचते हैं मैं तो भगवान का स्पर्श नहीं कर सका लेकिन जिसको स्पर्श हुआ है उसी का मैं स्पर्श कर लूँ। सुरुचि भी माफी माँगने लग जाती है। अब उसका मन निर्मल हो गया है। ध्रुवजी सुरुचि को भी प्रणाम करते हैं। और सुनीति की स्थिति कैसी हो गई? इसका वर्णन क्या कोई कर सकता है? मेरा प्रिय बालक मेरी बात मानकर चला गया। और ऐसा ध्रुव-अडिग बना रहा कि छः महीने में ही उसे भगवान के दर्शन भी हो गए। सुनीति की आँखों से आँसू निकल रहे हैं, और स्तन से दूध की धारा फूट पड़ी, उनकी ऐसी स्थिति हो गयी। फिर सब लोग ध्रुवजी को हाथी पर बिठाकर राज्य में वापस लाते हैं, और उनका स्वागत करते हैं। ध्रुव बड़े होने लगे। राजा उत्तानपाद ने ध्रुव का प्रभाव देखा तो उनको लगा कि अब ध्रुव को राज सिंहासन दे देना चाहिए। ऐसा सोचकर उन्होंने ध्रुव को राज्य दे दिया और वे स्वयं वन में चले गए। भागवत में ऐसी बात बार-बार देखने में आती है। सभी बड़े-बड़े लोग राज-काज के बाद वन में जाते हैं और संन्यास लेकर अपने मन को भगवान में लगा देते हैं। इससे हमें भी कुछ समझ लेना चाहिए। हर आदमी को एक दिन अपने घर से जाना चाहिए। जाने का समय भी निश्चित कर लेना चाहिए कि इससे ज्यादा घर में नहीं रहना है। घर में ज्यादा रहने से घरघराहट ज्यादा होती है। क्योंकि बुढ़ापे में घुर-घुर करते हैं। तो राजा उत्तानपाद इनको राजा बनाकर स्वयं वन में चले गए। उचित समय पर प्रजापति की कन्या भ्रमि के साथ ध्रुव जी का विवाह हुआ। उनके दो पुत्र हुए कल्प और वत्सर। उनकी एक दूसरी पत्नी का नाम था इला। उससे जो पुत्र हुआ उसका नाम था उत्कल। वह बड़ा शक्तिशाली और विरागी था, उसने राज नहीं किया। बाद में वत्सर राजा बन गया। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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