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श्रीमद्भागवत प्रवचन -स्वामी तेजोमयानन्द
7.शुकदेव जी का उत्तर
यहाँ एक और महत्त्वपूर्ण बात यह है कि यह ज्ञान हमें स्वयं अपनी बुद्धि से नहीं मिल सकता। यह तो गुरु-शिष्य परम्परा से ही प्राप्त होता है। इसलिए पूर्व-पूर्व की परम्परा, सम्प्रदाय बताते हैं, यों ही व्यर्थ में नहीं। इस रहस्य को समझना चाहिए। शुकदेवजी कहते हैं- ऐसा ही प्रश्न नारदजी ने ब्रह्माजी से पूछा था। तो नारदजी ने क्या पूछा था? नारदजी ने बड़े आदर के साथ ब्रह्माजी से पूछा था- ‘भगवन्, आप इतनी बड़ी सृष्टि का रचना-कार्य करते हैं, उसे संभालते हैं, यह सब आप किसकी शक्ति से करते हैं? आप कभी थके हुए भी दिखायी नहीं देते। सम्पूर्ण विश्व आपके सामने प्रकट है, आप सारे रहस्य जानते हैं। आत्मतत्त्व को भी जानते हैं। मुझे भी उस आत्मा का ज्ञान कराइये। आप यह सारा कार्य किस प्रकार करते हैं। वह भी मुझे समझाइये।’ नारदजी ब्रह्माजी के मानसपुत्र हैं, ब्रह्माजी उनकी बात सुनकर उन पर प्रसन्न हुए। प्रसन्न होकर उन्होंने कहा- ‘सम्यक् कारुणिकस्येदं वत्स ते विचिकित्सितम्’ - बेटा तुमने बहुत अच्छा प्रश्न पूछा है। क्योंकि तुम्हारा यह प्रश्न परमात्मा की याद दिलाने वाला है, उनका स्मरण कराने वाला है। यह सच बात है कि मुझे सब कुछ मालूम है, मैं विश्व को बनाता हूँ, लेकिन यह मेरी शक्ति नहीं है।
जिन्होने अपनी दृष्टि के प्रकाश से यह पूरा विश्व बनाया है, वास्तव में अपनी थोड़ी सी शक्ति उन्होंने ही मुझे दी है। उन्हीं की शक्ति से मैं यह सब कर रहा हूँ। यह बल मेरा अपना नहीं है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ 2.5.11
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