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श्रीमद्भागवत प्रवचन -स्वामी तेजोमयानन्द
40.अरिष्टासुर, केशी तथा व्योमासुर का उद्धार
भगवान श्रीकृष्ण नहीं चाहते कि ऐसा कोई वहाँ आ जाये। भगवान चाहते हैं कि व्रजवासियों की भक्ति निरापद रहे, उसमें कोई विघ्न, कोई व्यवधान न आने पाये। इसलिए उन्होंने अरिष्टासुर, केशी तथा व्योमासुर इन तीनों वेश धारी असुरों का नाश कर दिया। अब देखो, कभी-कभी धर्म के नाम पर अधर्म की बात सिखाने वाला हमारे पास आ पहुँचता है। उसी को अरिष्टासुर या वृषभासुर कहा गया है। वृषभ माने बैल, इसे धर्म का प्रतीक माना गया है। लेकिन यदि कोई असुर, वृषभ का वेश बना कर यानी धर्म का रूप धारण करके आ जाये तो वह बड़ा दुःखदायी सिद्ध होता है। जैसे, जीवन में कभी-कभी हमको मिथ्या धर्म का उपदेश करने वाले लोग बहुत मिल जाते हैं, वे हमें वास्तविक धर्म मार्ग से, ज्ञानमार्ग से बहका देते हैं। भगवान ने इस मिथ्या धर्म वाले का भी नाश कर दिया। अरिष्टासुर (वृषभासुर) का वध कर दिया। व्रजवासियों को पता तक नहीं है कि अब आगे क्या होने वाला है। अब कंस को प्रेरणा हुई क्योंकि नारद जी जाकर उसके कान में कुछ भर आये। “अरे! तुमने इतने सारे असुर गोकुल में भेजे लेकिन उस छोटे-से बालक ने उन सबको मार दिया। मालूम है। वही तो तेरा काल है। तुझे कुछ समझ में नहीं आता, वही कृष्ण है। वही देवकी का आठवाँ गर्भ- आठवाँ पुत्र है।” ऐसा नारद जी ने उसे बता दिया। तब कंस ने देवकी तथा वसुदेव जी को पुनः कारागृह में डाल दिया और फिर केशी को व्रज में भेज दिया, श्रीकृष्ण तथा बलराम जी को मारने के लिए। फिर वह सोचने लगा कि अब मैं क्या करूँ। उसने एक योजना बनाई। कंस स्वयं भी बड़ा अच्छा पहलवान था। उसको कुश्ती का बड़ा शौक भी था। उसके पास कई बड़े-बड़े पहलवान थे। जिनमें चाणूर तथा मुष्टिकासुर ये दोनों प्रधान थे। उनके सामने दूसरा कोई टिक नहीं पाता था। उसके पास एक कुवलयापीड नाम का बड़ा भयंकर बलशाली हाथी भी था। उसने सोचा यहाँ एक दंगल का आयोजन करते हैं। उसमें मल्ल युद्ध (कुश्तीबाजी) और एक धनुष-यज्ञ का आयोजन कर उस दंगल के बहाने श्रीकृष्ण तथा बलराम को यहाँ बुलाते हैं। बुलवाकर कुवलयापीड को उन दोनों पर छोड़ देंगे। वे कुवलयापीड से ही मर जायेंगे या फिर उनको कुश्ती खेलने के लिए कहेंगे। अब यहाँ ध्यान में रखना ये ग्यारह साल के बालक हैं। जबकि चाणूर और मुष्टिक बड़े-बड़े पहलवान हैं। बोले इनके साथ उनकी कुश्ती करा देंगे। तो ये उनको पकड़कर पीस डालेंगे। ऐसी योजना बनाकर कंस उन दोनों को लाने के लिए अक्रूर जी को भगवान के पास व्रज में भेजता है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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