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श्रीमद्भागवत प्रवचन -स्वामी तेजोमयानन्द
12.शकटासुर का उद्धार
आगे वर्णन आता है कि जिस दिन भगवान ने करवट बदली वही उनके जन्म-नक्षत्र का भी दिन था। महापुरुषों के अनुसार तब भगवान तीन मास के हो गए थे। इसी बात का उत्सव मनाया जा रहा था। बहुत भीड़ हो रही थी। यशोदा मैया ने भगवान का, अपने पुत्र का अभिषेक किया। ब्राह्मण लोग मन्त्र पढ़ रहे थे। सब कार्य ठीक प्रकार से सम्पन्न हो गया। मैया ने ब्राह्मणों को बहुत सारा दान दिया, उनके मन चाही वस्तुएँ भी दीं। फिर जब उन्होंने देखा कि उनके बालक की नींद आ रही है तो उन्होंने उसे सुला दिया। प्रायः देखने में आता है कि गाँव में बैलगाड़ी के बैलों को एक ओर बाँध देते हैं और छकड़ा नीचे रख देते हैं। गाँव वाले या तो अपनी झोली लटका कर उसमें बच्चे को डाल देते हैं, या फिर छकड़े के नीचे कुछ बिछौना डालकर बच्चे को उस पर सुला देते हैं। यशोदा मैया ने भी यही किया, छकड़े ने नीचे बच्चे को सुला दिया। छकड़े के ऊपर दूध, दही आदि सामान रखा हुआ था। कहा जाता है कि हिरण्याक्ष दैत्य का एक पुत्र था जो लोमश ऋषि के शाप के कारण शरीर-विहीन हो गया था। अब वह अशरीरी शकटासुर जाकर छकड़े में बैठ गया। थोड़ी देर बाद छोटे-से भगवान को भूख लग आई तो उनकी नींद टूट गई और वे रोने लगे। यशोदा जी अतिथियों के स्वागत सत्कार में लगी थीं, इसलिए उन्होंने सुना नहीं। अब यह देख कर भगवान को गुस्सा आ गया। क्रोध करके बच्चा जैसे पैर ऊँचे-ऊँचे फेंकता है वैसा ही भगवान ने भी किया। छोटे-से बालक का पैर पता नहीं छकड़े को कैसे लग गया, वह छकड़ा उलट गया। सारा दूध, दही जो उस पर रखा गया था, सब उलट कर नष्ट हो गया। अब धूम-धड़ाम करके गिरने की आवाजें हुइें, तो सब लोग चौक कर देखने लगे कि क्या हुआ? उन सब को आश्चर्य हुआ कि यह छकड़ा उलट कैस गया? वहाँ कुछ छोटे-छोटे बच्चे थे जो सदा श्री कृष्ण के साथ रहते थे (क्योंकि बच्चे हमेशा बच्चों के साथ रहते हैं।) वे कहते हैं-यह बालक रो रहा था, रोते-रोते इसने पैर ऊपर किया और छकड़े को उल्टा दिया। बड़े लोगों को छोटों पर जल्दी-से विश्वास नहीं होता। क्योंकि बड़े लोग तर्कवादी होते हैं। उनको लगा कि ऐसा कैसे हो सकता है? यह छोटा-सा बालक है और इसके छोटे-छोटे पैर हैं, वे इतना ऊपर छकड़े तक कैसे गये? बच्चे कहते हैं-हमने अपनी आँखो से देखा है। इसी बच्चे ने पैर मारा। तो बड़ो ने कहा कि उसमें इतनी ताकत कैसे आ गई कि पूरी गाड़ी को उलट दे? उनको विश्वास नहीं हुआ। अब नहीं हुआ तो नहीं हुआ। ये बड़े लोग अपने को कुछ ज्यादा ही बुद्धिमान समझते हैं। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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