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श्रीमद्भागवत प्रवचन -स्वामी तेजोमयानन्द
16.भगवान श्रीकृष्ण से उद्धव जी की प्रार्थना
अब द्वारका में घोर अपशकुन व उत्पात होने लगे। तब भगवान अपने सभी स्वजनों से कहते हैं कि यहाँ हमारे कुल को ब्राह्मणों का शाप लग चुका है। अतः अब इस स्थान को छोड़कर प्रभास क्षेत्र में जाना चाहिए। प्रभास महापुण्यप्रद क्षेत्र है। वहाँ जाकर हम पूजा, तर्पण, दानधर्म आदि करेंगे। ब्राह्मणों को भोजन कराएँगे। उन्हें दान-दक्षिणा देंगे। इससे हमें पुण्य की प्राप्ति होगी। और हमसे जो पाप हो गए हैं उनसे मुक्त हो जायेंगे। चलो आप लोग आगे बढ़ो मैं आ रहा हूँ।
तब सभी यदुवंशी भगवान के आदेश का पालन करते हुए वहाँ से प्रभास क्षेत्र जाने के लिए अपने-अपने रथ जोतने लगे।
उद्धव जी ने जब यह देखा-सुना, और यही नहीं वरन् घोर अपशकुनों को भी देखा, तो वे समझ गये कि भगवान इनको यहाँ से क्यों निकाल रहे हैं। वह इसलिए कि अब भगवान स्वयं भी यहाँ रुकने वाले नहीं हैं। पूर्व प्रसंगों में हम देख चुके हैं कि उद्धव जी ने पाँच वर्ष की आयु से ही भगवान की भक्ति की थी। भगवान की आयु अब 125 वर्ष की हो चली है तो उद्धव जी भी बूढ़े हो ही गए होंगे। वे भगवान के साथ-साथ ही रहे हैं। अब, जब उन्होंने देखा कि सब लोग जाने की तैयारी में हैं, भगवान अकेले बैठे हैं, तब, उद्धव जी एकान्त में भगवान के पास जाते हैं और-
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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