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श्रीमद्भागवत प्रवचन -स्वामी तेजोमयानन्द
85.भृगुऋषि द्वारा त्रिदेवों की परीक्षा
एक बार ऋषि मुनियों के बीच विचार चल रहा था कि ब्रह्मा, विष्णु और महेश इन तीनों देवों में सर्वश्रेष्ठ कौन हैं? इसका निर्णय करने के लिए उन्होंने भृगु ऋषि से कहा कि आप जाकर परीक्षण कर आइए कि इन तीनों में श्रेष्ठ कौन हैं। तो महर्षि भृगु सबसे पहले ब्रह्मा जी के पास जाते हैं। वहाँ पहुँचकर दण्ड के समान खड़े रहते हैं, नमस्कार नहीं करते। उन्हें स्तब्ध खड़ा देखकर ब्रह्मा जी को बड़ा गुस्सा आता है कि मेरा अपना लड़का है और यहाँ आकर नमस्कार भी नहीं करता, अभिवादन तक नहीं करता। उन्हें क्रोध तो आया, लेकिन उन्होंने सोचा कि आखिर मेरा अपना ही बेटा है, जाने दो। ऐसा सोचकर उन्होंने अपने क्रोध को शान्त किया। महर्षि भृगु ने कहा- ये तो परीक्षा में फेल हो गए। इन्हें क्रोध आ गया। फिर वे कैलाश पर्वत पर शिवजी के पास जाते हैं। भगवान शिव ने भृगु ऋषि को आते देखा तो उन्हें लगा मेरा भाई आया है। इसलिए वे बड़े प्यार से उठकर भृगु ऋषि को हृदय से लगाना ही चाहते थे कि भृगु ऋषि बोल पड़े, “मुझे हाथ मत लगाना। मेरा स्पर्श न करना। तुम सदा वेद बाह्य आचरण करते फिरते हो।” ऐसी बात सुनी तो शिवजी को क्रोध आ गया। तीक्ष्ण आँखों से वे भृगु ऋषि को देखने लगे और फिर अपने त्रिशूल से उन्हें मारने ही जा रहे थे, पर सती जी ने उन्हे रोक लिया। भृगुजी ने कहा- ये भी फेल हो गए। इसके बाद वे नारायण भगवान के पास गये जहाँ लक्ष्मी जी भी थीं। देखो, ब्रह्मा जी के पास गये तो इन्होंने कुछ किया नहीं, कुछ बोले भी नहीं। उसी से उनको गुस्सा आ गया। शिवजी के पास जा कर कड़ा बोल दिया, तो उससे शिव जी को क्रोध आ गया। अब नारायण भगवान के पास जाते हैं और सीधे एक लात मारते हैं नारायण भगवान की छाती पर। नारायण भगवान उनके पैरों को पकड़ लेते हैं। कहते हैं, “ब्राह्मण देवता, मेरा हृदय बड़ा कठोर है, आपके पैर अति कोमल हैं आपके पैरों को चोट तो नहीं लगी?” भृगु ऋषि ने कहा, “ये पास हो गए। परीक्षा में सफल हो गए।” |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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