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श्रीमद्भागवत प्रवचन -स्वामी तेजोमयानन्द
4.सगुण साकार का ध्यान
अब यदि हृदय में भी ध्यान नहीं कर सकते, तो फिर बाहर पूजा के स्थान पर भगवान की एक पूर्ति अथवा चित्र रख लें। सबसे पहले उनके चरणों पर अपनी दृष्टि स्थिर करें। फिर अपनी दृष्टि को ऊपर उठाते-उठाते उनके होंठों की ओर ले चलें। फिर उनकी आँखों में। फिर देखें कि भगवान कितने प्यार से देखते हैं। फिर आँखें बंद करके उसी रूप का मन में ध्यान करें। इससे भी मन शुद्ध हो जाएगा। शुद्ध होकर निर्गुण में स्थित हो जाएगा। देखो यहाँ शुकदेवजी कौन से प्रश्न का उत्तर दे रहे हैं? मरणासन्न पुरुष का कर्तव्य क्या होता है- इसी प्रश्न का। चाहे पूजा करें या ध्यान, स्मरण करें या चिन्तन, योगाभ्यास करें या प्राणायाम, बात इतनी है कि ‘येन केन प्रकारेण मनः कृष्णे निवेशयेत्’ मन को भगवान में लगा दें।
भगवान हृदय में कैसे बैठै हैं? मन में उठने वाली समस्त वृत्तियों के द्रष्टा बन कर बैठे हैं। अतः दृश्य से ध्यान हटाकर द्रष्टा की ओर ध्यान लगा देना चाहिए। तात्पर्य है स्मरण, कीर्तन, श्रवण मनन, निदिध्यासन सब प्रकार से भगवान का भजन हो।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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