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श्रीमद्भागवत प्रवचन -स्वामी तेजोमयानन्द
3.परीक्षित का मोक्ष
अगले अध्याय में शुकदेव जी परीक्षित को परमार्थ ज्ञान बताते हैं। कहते हैं -
अरे परीक्षित! अब तुम अन्तिम बात सुन लो - जो आदमी सोचता है कि मैं मरने वाला हूँ वह मूढ़-बुद्धि, पशु-बुद्धि वाला है। ‘मैं मरने वाला हूँ’ इस पशु-बुद्धि का तुम त्याग कर दो। सत्य तो यह है कि तुम मरणशील नहीं हो, केवल तुम्हारे देह का जन्म तथा मरण होता है। देखो, भगवान ने भी देह धारण किया, परन्तु अन्ततः उसे त्याग दिया। क्या भगवान अपनी देह को बनाए नहीं रख सकते थे?
अरे! तुम्हारा जन्म न तो पहले कभी हुआ था, न अब हुआ है और न आगे कभी होगा। मन ही ऐसी काल्पनिक सृष्टि करता रहता है। वही विभिन्न वस्तुएँ उत्पन्न करके उनसे जुड़ जाता है। शुकदेव जी कहते हैं, ”परीक्षित अब तुम यह सब छोड़कर आत्म स्वरूप में स्थित हो जाओ। तब, ऋषि कुमार के शाप के अनुसार जो तक्षक आएगा वह भी तुम्हारा कुछ नहीं बिगाड़ सकेगा।“
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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