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श्रीमद्भागवत प्रवचन -स्वामी तेजोमयानन्द
36.रासलीला
इतना समझकर अब हम प्रवेश करते हैं रासपंचाध्यायी में जो दशम स्कन्ध के पंचप्राण कहलाते हैं। कुछ लोग कहते हैं- यदि इन पाँच अध्यायों के खण्ड को निकाल दें तो भागवत अच्छा हो जायेगा। इसका मतलब यही हुआ कि किसी शरीर से प्राण निकाल दो, तो शरीर बहुत अच्छा हो जाएगा। ये पाँच अध्याय तो पंचप्राण हैं, आनन्द को ही निकाल डालें तो जीवन में शेष क्या रह जाएगा? सोचो जरा?
यदि आत्मा आनन्दस्वरूप न हो, तो जीने की इच्छा ही किसे हो? तब कौन जीना चाहे? इसं संसार में इतना दुःख होते हुए भी मनुष्य मरने की इच्छा नहीं करता, क्योंकि उसको लगता है कुछ आनन्द मिलने वाला है।
भगवान ने कुमारिकाओं को तथा गोपियों को जिन रात्रियों का संकेत किया था वे सब शरद् ऋतु की उस रात्रि में एकीभूत हो गई। उन्हें देखकर भगवान ने भी निश्चय कर लिया कि अब समय आ गया है। अपनी योगमाया का आश्रय लेकर अब मैं रासलीला कर सकता हूँ, क्योंकि अब यहाँ सबका अन्तःकरण शुद्ध हो गया। चीरहरण आदि अनेक लीलाओं से भगवान ने पहले से ही सबको तैयार किया है। तैयार करने के बाद, अब उन्हें ब्रह्मानन्द का अनुभव कराने के लिए वे उद्यत हो रहे हैं।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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