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श्रीमद्भागवत प्रवचन -स्वामी तेजोमयानन्द
15.देवताओं की भगवान से स्वधाम लौटने के लिए प्रार्थना
अगले अध्याय में वर्णन आता है कि जब नारद जी वसुदेव देवकी को उपदेश देकर चले गए तब ब्रह्मा जी, महादेव जी तथा देवेन्द्र, सारे देवता, भूतगण, मरुद्गण आदि सब भगवान के पास द्वारका में आए। सभी देवताओं ने भगवान की स्तुति की। तब ब्रह्मा जी ने कहा, “भगवान हमारी प्रार्थना पर आप अवतार ग्रहण करके इस पृथ्वी पर आये और आपने असुरों को मार कर पृथ्वी का भार उतार दिया। श्रीकृष्ण के रूप में आपको यहाँ पृथ्वी पर आए एक सौ पच्चीस वर्ष बीत चुके हैं। (तो क्या भगवान की आयु 125 साल की है? तात्पर्य है कृष्ण रूप में उनकी आयु 125 साल हो गयी थी।)”
“अब यहाँ आपको द्वारा करणीय कोई देवकार्य शेष नहीं है। आपके यदुकुल को ब्राह्मणों का शाप भी मिल चुका है, सभी यदुवंशी स्वयं ही नष्ट हो जायेंगे, अब आपके बिना वैकुण्ठ लोक अच्छा नहीं लगता। अतः आपको उचित लगे तो अब आप वैकुण्ठ लोक लौट चलिए।” भगवान ने कहा, “यह सब मैंने पहले से ही सोच लिया है। आप ठीक कह रहे हैं- यहाँ मैं आपका कार्य समाप्त कर चुका हूँ। यदुवंश को ब्रह्मशाप भी लग चुका है लेकिन वह सब मैं अपनी आँखों से देखने के पश्चात ही आना चाहता हूँ। जब तक ये लोग द्वारका में रहेंगे, तब तक ब्रह्मशाप काम नहीं करेगा। इसलिए पहले इनको द्वारका से बाहर निकाल कर किसी दूसरे क्षेत्र में ले जाना है।”
“ये यदुवंशी जिनकी सहायता से मैंने अन्य असुरों का तथा कौरवों का संहार किया, वे सब अति प्रबल, अत्यंत शक्तिशाली हो गए हैं। साथ ही धन, बल आदि के मद से उन्मत्त हो गए हैं। इनका नाश होने के पूर्व ही मैं यहाँ से चल दूँ तो फिर इनको कोई रोक नहीं पाएगा और दे उद्दण्ड होकर सबके विनाश का कारण बन जाएँगे।”
“ब्राह्मणों के शाप के अनुसार यदुवंशियों का नाश तो प्रारम्भ हो ही गया है। लेकिन मैं उसके अन्त को देखकर ही लौटूँगा।” तब वे सब भगवान को नमस्कार करके अपने-अपने धाम चले गये। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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