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श्रीमद्भागवत प्रवचन -स्वामी तेजोमयानन्द
38.सुदर्शन व शंखचूड़ का उद्धार
इसके बाद, एक बार शिवरात्रि के दिन अम्बिका वन में जाकर, नन्दादि सब गोपों ने पशुपति भगवान की पूजा की, देवी जी की भी पूजा की और फिर दान-पुण्य आदि अनेक सत्कर्म करके वे सब उस दिन वहीं नदी के तट पर ही सो गये। तब वहाँ एक अजगर ने नन्दबाबा को पकड़ लिया। देखो इन सब ने सत्कर्म तो किये, पर उसके बाद वे सब सो गए माने सतर्क नहीं रहे, इसलिए अजगर आ गया। तात्पर्य यह है कि सत्कर्म करके यदि सचेत न रहें, तो अहंकार रूपी अजगर आ जाता है और वह हमें खा ही डालने की थाह में रहता है। भगवान ने उस अजगर से नन्दबाबा को छुड़ाया और अपने चरण स्पर्श से अजगर बने हुए सुदर्शन को अजगर योनि से मुक्त करा दिया। उसे अपने पूर्व रूप- विद्याधर रूप की प्राप्ति हो गई। उसका पूर्व नाम ‘सुदर्शन’ था। अंगिरा ऋषि के शाप के कारण वह अजगर बन गया था। तो भगवान ने इधर अपने पिता को भी मुक्त कराया और साथ ही उस अजगर का भी उद्धार कर दिया। फिर एक बार वसन्त ऋतु की रात्रि के समय जब श्रीकृष्ण तथा बलराम जी गोपियों के साथ नृत्य-गान करते हुए विहार कर रहे थे, तब ‘शंखचूड़’ नामक एक यक्ष जो कुबेर का अनुचर था, वह गोपियों को लेकर भागने लगा, तब भगवान श्रीकृष्ण ने उसका वध कर दिया। उसकी चूड़ामणि निकाल कर भगवान ने उसे बलराम जी को दे दिया। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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