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श्रीमद्भागवत प्रवचन -स्वामी तेजोमयानन्द
13.तृणावर्त का उद्धार
इस प्रसंग के बाद एक दिन की बात है। यशोदा मैया दूध पिलाने के बाद भगवान को अपनी गोद में लेकर दुलार रही थीं।
न जाने क्यों वे अत्यधिक भारी होने लगे। यशोदा को समझ में नहीं आया कि यह छोटा-सा बालक इतना वजनी क्यों होता जा रहा है? जब वह भार उनसे सहन नहीं हुआ तो उन्होंने श्रीकृष्ण को जमीन पर बैठा दिया। इतने में कंस के द्वारा भेजा गया उसका सेवक बवंडर का रूप धारण करके वहाँ आ गया। जब आँधी आती है, तो सारे पत्ते, धूल आदि गोल-गोल घूमते रहते हैं। कभी आपने देखा है कि आँधी आती है तो कैसा भँवर-सा बन जाता है? यह जो दूसरा असुर आया है-उसका नाम था ‘तृणावर्त’। देखो, भगवान अब उसको भी मुक्ति देना चाहते हैं। यहाँ आपको एक बात बता देते हैं। यह जो भगवान की असुरों को मारने की लीला है, यह कोई बहुत शूर-वीरता की अथवा ऐश्वर्य लीला नहीं है। यह तो माधुर्य लीला है। असुरों को मारने में भगवान क्या कोई शौर्य हो सकता है? एक पाँव लगते ही शकटासुर मिट गया। दूध पिया तो पूतना खत्म हो गई। यह क्या कोई ऐश्वर्य है? यह तो माधुर्य की ही कथा है, करुणा की कथा है, शूरता की कथा नहीं है। तृणावर्त वहाँ आया, और झूँ करते हुए छोटे-से बच्चे रूपी भगवान को उड़ा कर आकाश में ले गया। जब आकाश में गए तो भगवान ने पकड़ लिया उसके गले को। और पकड़कर जोर से दबाने लगे। वैसे भी वह अपने से भारी भगवान के भार को सह नहीं पर रहा था। धीमा पड़ गया था। ऐसे अद्भुत बालक से वह अपने आप को छुड़ा नहीं सका। भगवान की यह एक विशेषता है- वे जिसे पकड़ते हैं उसे छोड़ते नहीं। अरे! कितनी अच्छी बात है। इसीलिए भगवान से कहो कि आप मुझे पकड़ लीजिए, किसी भी प्रकार से। भगवान ने उसके गले को इतनी जोर से दबाया कि उसके प्राण निकल गए और वह धड़ाम से नीचे गिर पड़ा। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ 10.7.18
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