विषय सूची
श्रीमद्भागवत प्रवचन -स्वामी तेजोमयानन्द
6.मोहिनी-अवतार
हार कर तब देवताओं ने भगवान की तरफ देखा। भगवान ने कहा, “मुझे मालूम था कि तुम मेरे ही पास आओगे। अब रोओ मत। इतना सब मैंने किया है तो अमृत किस प्रकार से लेना है, वह भी मैं बता सकता हूँ।” अब भगवान ने बड़ा सुन्दर मायावी रूप धारण कर लिया। वे स्त्री का रूप लेकर आ गए क्योंकि वे जानते हैं कि असुरों की एक कमज़ोरी है ‘स्त्री’, और दूसरी है ‘सुरा’। भगवान विष्णु ने निश्चय करके अत्यंत सुंदर मनमोहक रूप ले लिया। लेकिन वह सौन्दर्य सात्त्विक नहीं था, मादक सौंदर्य था। भगवान की माया देखो कैसी है, उस रूप को देखकर देवताओं के मन में विकार उत्पन्न नहीं हुआ। लेकिन असुरों का मन जो पहले से ही बिगड़ा हुआ था, उसे भगवान ने और बिगाड़ दिया। अब वह अमृत कलश उनके हाथों में ज्यों-का-त्यों रह गया। वे सब उस स्त्री रूपधारी भगवान को ही देखने लगे। और फिर उसके पास जाने लगे। वे उससे पूछते हैं कि तुम कौन हो? तुम कितनी सुंदर हो। लगता है अब तक तुम्हें किसी का स्पर्श भी नहीं हुआ है। तुम बिल्कुल शुद्ध हो। इतना ही नहीं, उनकी बुद्धि तो पूरी तरह से मोहित हो गई। आखिर भगवान के इस मोहिनी अवतार का प्रभाव तो होना ही था। फिर उन्होंने (असुरों ने) कहा-यह अमृत है जिसे हमने ले लिया है परन्तु अब इसके कारण हममें झगड़ा चल रहा है। यह अमृत कलश अब हम आपको देते हैं। आप निर्णय करो कि अमृत किसको मिलना चाहिए। देखो, कैसी बुद्धि हो गई उनकी। मानो कि भगवान कह रहे हों मैं लेना भी जानता हूँ। देखो भगवान भी वहाँ कैसी चतुराई दिखाते हैं, सीधे उस अमृत कलश को ले नहीं लेते। मंद-मंद मुस्कराते हुए उनकी ओर देखते हैं और कहते हैं, “अरे! मैं ऐसी घुमक्कड़ स्त्री हूँ। आप मेरे ऊपर भरोसा करते हो? भला बुद्धिमान् मनुष्य भी कभी मेरी जैसी स्त्री पर भरोसा करते हैं? ऐसी व्यभिचारिणी स्त्री का क्या भरोसा? उसके साथ मैत्री नहीं करनी चाहिए।” ऐसी बात जब मोहिनी ने कही तो उनका विश्वास और भी बढ़ गया। बोले- हमें तुम पर पूरा विश्वास है। तुम यह कलश ले लो। भगवान (स्त्री रूप धारी) ने वह कलश अपने हाथों में ले लिया। भगवान देना जानते हैं तो लेना भी जानते हैं। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
क्रमांक | विवरण | पृष्ठ संख्या |
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज