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श्रीमद्भागवत प्रवचन -स्वामी तेजोमयानन्द
1.भगवान हरि के द्वारा गजेन्द्र की मुक्ति
स्वयम्भुव मनु के पश्चात् दूसरे मनु हुए स्वरोचिष मनु। उनके बाद तीसरे मनु हुए उत्तम। इनका अति संक्षिप्त वर्णन करके श्री शुकदेव जी आगे कहते हैं- चतुर्थ मन्वन्तर में उत्तम का भाई तामस मनु बना और उस मन्वन्तर में भगवान का ‘हरि’ नामक अवतार हुआ। उन हरि ने गजेन्द्र को मुक्त किया। हाथियों के राजा गजेन्द्र एक बार संकट में पड़ गये। हारकर अन्त में उन्होंने भगवान को पुकारा।
गजराज पर विपदा पड़ी तो उन्होंने भगवान को ‘हरि हरि’ कहकर पुकारा। तब भगवान आये और आकर ग्राह के बन्धन से उसे छुड़ा लिया। यह बड़ी सुन्दर कथा है। कहा जाता है कि जीवन में जब कोई संकट आए, कष्ट आए और यदि समझ में न आ रहा हो कि क्या करें, तब इस ‘गजेन्द्र मोक्ष’ प्रसंग का पाठ करने से वह संकट दूर हो सकता है। श्री शुकदेव जी ने जब गजेन्द्र मोक्ष की यह कथा कहीं, तो राजा परीक्षित ने कहा कि भगवान इस कथा को आप मुझे विस्तार से सुनाइए। ऐसे संक्षेप में सुनकर मुझे संतोष नहीं हो रहा है।
एक त्रिकूटाचल पर्वत है जो क्षीर सागर से आवृत्त है। वहाँ एक बहुत सुन्दर उपवन है, और सरोवर भी है जो बहुत विशाल है। वहाँ हाथियों का राजा गजेन्द्र रहता था जो बड़ा शक्तिशाली था। वह इतना शक्तिशाली था कि शेर, भालू, सिंह आदि सभी उससे डरते थे, जबकि प्रायः तो सिंह भी आक्रमण करके हाथी को मार डालने की शक्ति रखता है। जिनके ऊपर उस गजेन्द्र की कृपा होती थी वे निर्भय हो जाते थे। हथिनियों का समूह उसके साथ चलता था। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ 8.2.1
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