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श्रीमद्भागवत प्रवचन -स्वामी तेजोमयानन्द
22.ब्रह्माजी का मोह
श्री शुकदेव जी कहते हैं, सारे देहधारियों के प्रिय आत्मा ये ही हैं। सारे ग्वालबाल जब श्रीकृष्ण से प्यार करते थे तो वास्तव में वे अपने आप से ही प्यार करते थे। भले ही उन्हें पता नहीं था कि ये श्रीकृष्ण हमारी अपनी आत्मा ही हैं। लेकिन अनजाने में भी, नहीं जानते हुए भी वे श्रीकृष्ण से अत्यधिक प्यार करते थे, उसक कारण यही था।
अब भगवान श्रीकृष्ण तथा बलराम जी छठे वर्ष में प्रवेश कर चुके थे। इसलिए अब उन्हें गौएँ चराने की अनुमति मिल गई थी। गौएँ चराते हुए वे वृन्दावन को पावन कर रहे हैं। भगवान श्रीकृष्ण तथा बलराम जी, समस्त गोपबालकों के नायक हैं। जब भी बच्चों का खेल होता था तो एक ओर श्रीकृष्ण नायक होते थे और दूसरी ओर बलराम, इस प्रकार विभाग होता था और फिर जो भी कोई खेल हो, वे सब मिलकर खेलते रहते थे। 23.धेनुकासुर का उद्धारएक समय की बात है, श्रीकृष्ण के सखा श्रीदामा, सुबल तथा स्तोककृष्ण आदि सब आकर कहते हैं कि भगवान यहाँ ताड़वन नाम की एक अच्छी जगह है। वहाँ बड़े अच्छे ताड़ के पेड़ हैं जिनमें बड़े मीठे फल लगे हुए हैं, लेकिन वहाँ एक असुर रहता है। वह हमको वहाँ जाने नहीं देता है। हमें उन फलों को खाने की इच्छा हो रही है। आप को इच्छा लगे, आपका मन माने तो आप वहाँ चलिए। तब हम सब उन फलों को खा सकेंगे। तब वे सब मिलकर ताड़वन में जाते हैं। वहाँ बलराम जी उस धेनुकासुर का वध करते हैं। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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