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श्रीमद्भागवत प्रवचन -स्वामी तेजोमयानन्द
16.मृद्भक्षण-लीला
एक दिन माखन खाने के बाद भगवान ने मिट्टी खा ली। वे मिट्टी में बहुत लोटपोट तो होते ही थे, आज उन्होंने मिट्टी खा भी ली। उनके साथी-संगी जो ग्वालबाल थे, उन्होंने जा कर मैया से कह दिया। अब मैया ने डरे हुए श्री कृष्ण का हाथ पकड़ लिया और डाँट कर कहती हैं- ‘भवान्’ (यानी आप) आपने मिट्टी क्यों खाई? तू ने मिट्टी क्यों खाई ऐसा नहीं कहतीं। छोटे बच्चे को आप कहती हैं। घरों में भी जब बड़े नाराज होते हैं तो छोटों को ऐसे ही सम्बोधित करते हैं। भगवान ने कहा- ‘नाहं भक्षितवान अम्ब’ माँ मैंने मिट्टी नहीं खाई। मैया ने कहा तेरे सारे सखा कह रहे हैं, इतना ही नहीं तेरा बड़ा भाई बलराम भी यही कह रहा है। तो भगवान कहते हैं- ‘सर्वे मिथ्याभिशंसिनः’ सब झूठ बोलते हैं। मैंने कहाँ मिट्टी खायी? माँ ने कहा सब झूठे हैं, बस! तू ही एक सच्चा है यहाँ पर?
भगवान कहते हैं- यदि तुमको ऐसा लगता है कि मैं झूठ बोल रहा हूँ तो स्वयं देख लो। प्रत्यक्ष से बढ़कर‚ क्या प्रमाण होता है तो देखी हुई बात बोलता है और कोई सुनी हुई बात बोलता है, तो देखी हुई बात पर ही विश्वास किया जाता है। माँ ने कहा यदि ऐसा है तो मुँह खोल कर दिखा दे। तब भगवान ने मुँह खोल दिया तो माँ को वहाँ आकाश आदि पंचमहाभूत, दिशाएँ, सूर्य, चन्द्र, ग्रह, नक्षत्र, ज्योतिर्मण्डल, पंचतन्मात्रा, जीव, उनके कर्म, स्वभाव आदि सारा विचित्र संसार, व्रज भूमि सहित सारा ब्रह्माण्ड दीखने लगा। मैया ने वहाँ व्रज भूमि में स्वयं को भी देखा। पूर्व में जब मैया ने अपने बालक के मुँह में सारा विश्व देखा तो आँखें बन्द कर ली थीं। अब की बार उन्होंने बन्द नहीं कीं, वे सोचने लगीं, चिन्तन करने लगीं। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ 10.8.35
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