विषय सूची
श्रीमद्भागवत प्रवचन -स्वामी तेजोमयानन्द
13.राजा बलि के अभिमान का निवारण
तीसरा पैर रखना तो अभी शेष था। उसके लिए कोई स्थान ही नहीं रहा। अतः भगवान ने गरूड़ की ओर देखा तो गरुड़ जी समझ गये।
उन्होंने राजा बलि को वरुण पाश से बाँध लिया। भगवान कहते हैं, “मैंने एक पैर से पृथ्वी का नाप लिया, दूसरे पैर से स्वर्ग को नाप लिया, अब तीसरा पैर कहाँ रखूँ? तुम्हारा वचन अभी पूरा नहीं हुआ है। वचन पूरा नहीं होगा तो तुम्हें पाप लगेगा।” देखो बलि के मन में किसी प्रकार की कृपाणता या भय, कुछ नहीं आया। बलि कहता है-
भगवान आप यदि ऐसा समझते हैं कि मैंने झूठ बोला है तो मैं अपने वचन को सत्य करता हूँ।
राजा बलि की महानता देखो, कहते हैं, “मैं अपने वचन को सत्य करता हूँ, जिससे बाद में मुझे दोष प्राप्त न हो।” जबकि बात यह थी कि भगवान छोटे बन कर आये थे और तीन पैर की जमीन माँगी थी, तो वास्तव में उन्हें अपने बटु रूप के परिमाण से तीन पैर बराबर जमीन लेनी चाहिए थीं। तो क्या भगवान ने छल किया, झूठ बोला? ऐसा नहीं कह सकते। वह तो भगवान ने दूसरा रूप धारण कर लिया। बलि कहते हैं-
यह मेरा मस्तक आपके सामने हैं। आप अपना पैर मेरे मस्तक पर रख दीजिये। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
क्रमांक | विवरण | पृष्ठ संख्या |