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श्रीमद्भागवत प्रवचन -स्वामी तेजोमयानन्द
11.धर्म व पृथ्वी का संवाद
एक गाय है और एक बैल। गाय बड़ी दुःखी होकर रोती हुई खडी़ है। बैल के तीन पाँव टूट गये हैं एक पाँव पर लंगड़ाता हुआ वह किसी तरह चलकर उस गाय के पास आता है उसे देखकर गाय और भी तेज रोने लगती है। ये दोनो कौन है? गाय पृथ्वीमाता है और बैल धर्म है, धर्म का प्रतीक है (भगवान शिव नंदी बैल के ऊपर चलते हैं) अर्थात् धर्म के ऊपर आरूढ़ होकर चलते हैं। वह बैल - वृषभ रूपी धर्म पृथ्वी के पास जाकर उसे पहचानकर प्रश्न पूछता है। बोले- माताजी, आज क्यों दुःखी हो रही हैं? क्या मुझे एक पैर का देखकर आपको दुःख हो रहा है कि सारे साधु यहाँ से चले गये हैं, अब सिर्फ दुष्ट लोग ही आपका भोग कर रहे हैं, आगे भी करने वाले हैं। या कहीं ऐसा तो नहीं कि भगवान श्री कृष्ण - आपके स्वामी यहाँ से चले गये और उनको याद कर आपको दुःख हो रहा है? देखो, भगवान की दो पत्नियाँ कही जाती हैं- एक श्रीदेवी और दूसरी भूदेवी। श्रीदेवी लक्ष्मीजी हैं और भूदेवी पृथ्वी माता हैं। भगवान यहाँ उनका दुःख दूर करने के लिए आते हैं। अब वे चले गये हैं। तो वृषभ कहते हैं, ‘‘आप धरणी हैं, पृथ्वी माता हैं, मुझे बताइए क्या बात है।’’ वे कहती हैं- ‘भवान हि धर्म’ आप तो धर्म हैं, आप सब कुछ जानते हैं। आपने सच बात कहीं है। सारे सद्गुणों के निधान जो भगवान है, जिनके चरणों का स्पर्श मुझे निरंतर प्राप्त हो रहा था। वे यहाँ से चले गये है, उनकी याद से मुझे बहुत दुःख हो रहा है।
जिन भगवान ने मुझे निरंतर इतना आनन्द दिया, उनके विरह को अब मैं कैसे सहुँ? साथ ही यह देखकर कि आप एक पैर के ऊपर चलते जा रहे हैं, मुझे अत्यंत दुःख हो रहा है। ऐसा उन दोनों का, धर्म तथा पृथ्वी माता का, संवाद चल ही रहा था कि इसी बीच एक शूद्र व्यक्ति वहाँ आ पहुँचा। कैसा था वह? |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ 1.16.30
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