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श्रीमद्भागवत प्रवचन -स्वामी तेजोमयानन्द
81.माता देवकी के छः पुत्रों को लौटा लाना
एक बार, श्रीकृष्ण तथा बलराम जी यथावत प्रातः आकर वसुदेव जी व देवकी माता को प्रणाम करते हैं। तब, अपने पुत्र भगवान श्रीकृष्ण के विषय में, वसुदेव जी ने जैसा-जैसा सुन रखा था, उसी रीति से उनके माहात्म्य का गान करते हुए वे कहने लगे, “यद्यपि आप हमारे पुत्र के रूप में यहाँ प्रगट हुए हैं, तथापि आप कोई सामान्य बालक नहीं हैं।” फिर वसुदेव जी ने भगवत् तत्त्व का निर्देश किया। देवकी जी पास ही बैठी थीं। जब उन्होंने यह सब सुना, तो उन्हें अपने उन पुत्रों की याद आ गई जिन्हें कंस ने जन्म लेते ही मार डाला था। वे श्रीकृष्ण से कहती हैं, “सब लोग कहते हैं कि तुम ईश्वर हो। तुम सब कुछ कर सकते हो। मैंने सुना है कि तुम दोनों अपने गुरु सान्दीपनि जी के मृत पुत्रों को लौटा लाये थे। मेरे छः पुत्रों को दुष्ट कंस ने जन्म लेते ही मार डाला था। मैं उन सभी पुत्रों को देखना चाहती हूँ, उनसे मिलना चाहती हूँ। तुम दोनों उन सबको लेकर आओ।” तब भगवान अपनी माँ की भी इच्छा पूरी करते हैं। जिन पुत्रों का मरण हो चुका था, वे उन्हें फिर से ले आते हैं और अपनी माँ को सौंप देते हैं। देवकी माता उन्हें देखकर आनन्द विभोर हो जाती हैं। उन्हें हृदय से लगाकर स्तन पान कराती हैं। वे सब वसुदेव जी, श्रीकृष्ण तथा बलराम जी को प्रणाम करते हैं। तब, भगवद् दर्शन तथा स्पर्श से आत्म दर्शन प्राप्त करके, सब के देखते-देखते वे सब देवलोक चले जाते हैं। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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