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श्रीमद्भागवत प्रवचन -स्वामी तेजोमयानन्द
3.दिति की याचना
हिरण्याक्ष के साथ भगवान का युद्ध हुआ, ऐसा सुनने पर जैसे हम लोगों को भी उस विषय में थोड़ी और बातें जानने की उत्सुकता होती है, वैसे ही वहाँ पर विदुर जी को भी अधिक जानकारी प्राप्त करने की इच्छा हुई, इसलिए उन्होंने प्रश्न पूछा कि किस कारण से हिरण्याक्ष पृथ्वी को रसातल में ले गया था? भगवान ने अवतार क्यों लिया? उनका युद्ध क्यों हुआ, यह सब आप मुझे बताइये। तब मैत्रेय ऋषि बताना प्रारम्भ करते हैं।
कश्यप ऋषि के साथ दिति और अदिति इन दोनों का विवाह हुआ। ‘दिति’ शब्द का अर्थ होता है- जो टुकड़े-टुकड़े कर दे, (वह दिति) और ‘अदिति’ उसको कहते हैं जो टुकड़े-टुकड़े नहीं करती। इसलिए दिति के पुत्र हुए दैत्य - सारे असुर लोग। और अदिति के पुत्र हुए आदित्य- सारे देवता लोग। दिति और अदिति दोनों बहने हैं और कश्यप ऋषि की पत्नियाँ भी हैं कश्यप प्रजापति हैं और उनसे ही यह सारी सृष्टि हुई है। एक दिन ऐसा हुआ कि शाम का समय था, कश्यप ऋषि सन्ध्यावन्दन करने के लिए बैठे थे। उसी समय दिति के मन में बड़ी भयंकर कामवासना जागृत हुई। और वह कश्यप ऋषि के पास जाकर कहने लगी कि मेरी इच्छा पूरी कीजिए। कश्यप ऋषि ने कहा, तुम्हारी इच्छा है वह तो ठीक है, लेकिन यह शाम का समय इसके लिए सर्वथा अयोग्य है। इस समय रुद्रादि देवता विचरण करते रहते हैं। और इस प्रकार का काम अधर्म हो जाता हैं। इससे वे रुष्ट हो जाते हैं। यह योग्य समय नहीं है। लेकिन ‘कामातुराणां न भयं न लज्जा’ एक बार जिसके मन में कामना आ गयी, आवेश आ गया, तो फिर उसे न भय लगता, और न ही लज्जा आती है। बाद मे अवश्य भय भी लगता है, लज्जा भी आती है, लेकिन उस समय नहीं। तो देखो, वे सन्ध्यावन्दन करना चाहते हैं और यह दिति हैं उनका उत्तरीय वस्त्र खींचने लगी। तब कश्यप ऋषि ने भगवान को नमस्कार किया। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ 3.14.7
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