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श्रीमद्भागवत प्रवचन -स्वामी तेजोमयानन्द
3.दक्ष यज्ञ का विध्वंस
यह सब होते ही नारद मुनि शिवजी के पास पहुँच गये। नारद जी बड़े चतुर थे, बहुत ही शीघ्रता से समाचार पहुँचाते रहते हैं। तो वे शिवजी के पास आकर उन्हें समाचार देते हैं। बोले महाराज, आपकी पत्नी का दक्ष यज्ञ में बड़ा अपमान हुआ। उन्होंने अपनी देह को योगाग्नि में जला डाला। शिवजी ने जब नारद जी से इस बात को सुना ‘असत्कृताया अवगम्य नारदात्’ तो उन्हें बड़ा क्रोध आ गया। अत्यंत उग्र रूप धारण करके उन्होंने अपनी जटा का एक बाल निकाला और उसे जमीन पर पटक दिया। उसमें से सहस्र भुजाओं और तीन नेत्रों वाला एक भयंकर प्राणी निकला। उसका नाम था वीरभद्र। वीरभद्र ने हाथ जोड़कर कहा - भगवन् मैं क्या करुँ? शिवजी ने कहा, ”जाओ मेरे पार्षदों सहित तुम वहाँ जाकर दक्ष को तथा उसके यज्ञ में जो शेष बचा हो, उसे भी नष्ट कर दो।“ देखो, यहाँ एक बात विशेष ध्यान देने योग्य है। दक्ष ने जब स्वयं शिवजी का अपमान किया तब तो उनको गुस्सा नहीं आया लेकिन जब उसने सती जी का अपमान किया तो वे इतने क्रुद्ध हुए कि वीरभद्र को उत्पन्न किया और उसे वहाँ भेज दिया। वह इसलिए कि सती जी भक्त हैं। और देखो, सती जी को भी क्रोध क्यों आया? पति का अपमान होते देखा, तो क्रोध आया। नन्दी ने भी वहाँ पर कहा, ”तुम सब लोग भगवान की निंदा सुनते हो?“ ऐसा नियम है कि जो लोग भगवान की निंदा करते हैं, उनको तो पाप लगता ही है लेकिन जो भगवान की निंदा सुनते हैं उन्हें भी पाप लगता है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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