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श्रीमद्भागवत प्रवचन -स्वामी तेजोमयानन्द
दशम स्कन्ध (उत्तरार्ध)
54.जरासन्ध के सत्रह आक्रमण
उत्तरार्ध में सर्वप्रथम जरासन्ध का प्रसंग आता है। जरासन्ध मगध देश का राजा था और वह बड़ा शक्तिशाली था। जन्म लेते ही उसके दो टुकड़े हो गए थे, पर जरा नाम की स्त्री ने उन्हें जोड़ दिया था। इसी वजह से उसका नाम जरासन्ध पड़ गया। इसी कारण उसका वध तभी सम्भव था जब उसके दो टुकड़े कर दिए जाएँ। यह जरासन्ध भी कंस का मित्र था। जरासन्ध, शिशुपाल, दन्तवक्त्र, शाल्व, विदूरथ और कंस, इन सबकी आपस में बड़ी मैत्री थी। जरासन्ध ने अपनी दोनों लड़कियों का विवाह कंस से कर दिया था। कंस की उन दो पत्निायों के नाम थे अस्ति और प्राप्ति। ये दोनों नाम बड़े विचारणीय हैं।
मनुष्य की दो ही वृत्तियाँ प्रधान होती हैं। यह चीज मेरे पास है ‘अस्ति’ और मुझे अन्य की प्राप्ति करनी है ‘प्राप्ति’, प्रायः मनुष्य अपने जीवन में इन्हीं दो बातों को महत्त्व देता रहता है। भगवान के द्वारा जब कंस की मृत्यु हो गई, तब ये दोनों अस्ति-प्राप्ति अपने पिता जरासन्ध के पास गयीं। जरासन्ध ने जब उनसे सुना कि श्रीकृष्ण ने कंस को मार दिया है तो वह बड़ा क्रोधित हो गया। उसने बड़ी भारी (तेईस अक्षौहिणी) सेना के साथ मथुरा पर आक्रमण कर दिया। तब, बलराम जी तथा श्रीकृष्ण उससे युद्ध करते हैं। उसकी चतुरंगिणी सेना को नष्ट करते हैं पर उसे मारते नहीं, छोड़ देते हैं। उसे हार कर लौट जाना पड़ता है। भगवान श्रीकृष्ण उसे मारते नहीं, इसका विशेष कारण है। वह यही कि जरासन्ध जीवित रहेगा, तो वह पुनः असुरों को एकत्रित करके ले आएगा। तब अनायास ही भगवान के अवतार का प्रयोजन सिद्ध होगा, दुष्टों का संहार होगा, जिससे पृथ्वी का भार हल्का होगा। इसी प्रकार से, उस जरासन्ध ने सत्रह बार मथुरा पर आक्रमण किया, बार-बार युद्ध किया परन्तु हर बार भगवान ने उसे हराकर छोड़ दिया, मारा नहीं। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ भ. गीता 16.13
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