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श्रीमद्भागवत प्रवचन -स्वामी तेजोमयानन्द
57.मुचुकुन्द की कथा
तो ये मुचुकुन्द महाराज वहाँ सो रहे थे। भगवान को सब मालूम था। अतः वे भागते हुए वहाँ पहुँचे और गुफा के अन्दर छिप गये। अपना उपवस्त्र उन्होंने सोते हुए मुचुकुन्द पर डाल दिया। इतने में इनका पीछा करते-करते कालयवन भी गुफा में घुस आता है, परन्तु उसे वहाँ पर ठीक से कुछ दिखायी नहीं पड़ता। देखो, प्रकाश से जब एकदम कोई अंधेरे में जाता है, तो थोड़ी देर तक वह ठीक से कुछ देख नहीं पाता। कुछ देर बाद उसने देखा कि कोई वहाँ पर सो रहा है। फिर उस उपवस्त्र को देखकर कालयवन ने समझा कि यह कृष्ण ही हैं। उसे लगा कि युद्ध से भागकर यहाँ आकर सोता है? ऐसा सोचकर उसने सोये हुए मुचुकुन्द को श्रीकृष्ण समझ कर लात मार दी तो सोये हुये राजा मुचुकुन्द जग गए। उनको लगा मुझे नींद से जगाने के लिए यहाँ कौन आ गया है? फिर तो क्या था, बस कालयवन सामने ही खड़ा था। जैसे ही राजा मुचुकुन्द की दृष्टि उस पर पड़ी वैसे ही वह जलकर राख हो गया। तब मुचुकुन्द देखते क्या हैं कि भगवान वहाँ चुपचाप खड़े हैं। ये मुचुकुन्द महाराज भगवान के भक्त थे। देखो, इसलिए भगवान मथुरा से भाग आए थे, डर के कारण नहीं। तो यहाँ भगवान राजा मुचुकुन्द को दर्शन देते हैं और आशीर्वाद भी देते हैं कि तुम्हें मेरी अनपायनी भक्ति प्राप्त होगी। फिर कहते हैं, “अब तुम यहाँ से जाओ और तप करो। अपनी साधना में आगे बढ़ो। अगले जन्म में जब तुम्हें ब्राह्मण जन्म प्राप्त होगा, तुम सबके सुहृत् बनोगे, तब तुम्हें स्वरूपतः मेरी प्राप्ति होगी।” कुछ लोगों का कहना है कि ये मुचुकुन्द महाराज ही बाद में श्रीधर स्वामी बनकर आये। यह तो श्रद्धा की बात है, मान लेना हितकर है। श्री श्रीधर स्वामी ने भागवत पर बहुत सुन्दर भाष्य लिखा है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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