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श्रीमद्भागवत प्रवचन -स्वामी तेजोमयानन्द
55.द्वारका का निर्माण
जरासन्ध का एक मित्र था कालयवन। नारद जी से जब कालयवन ने श्रीकृष्ण-बलराम का पराक्रम सुना, तो अपनी म्लेच्छों की सेना को साथ लेकर उसने मथुरा पर चढ़ाई कर दी, मथुरा को घेर लिया। तब, बलराम जी से मिलकर भगवान ने विचार किया कि कालयवन के पीछे-पीछे जरासन्ध भी पुनः आक्रमण करने आता ही होगा। हम दोनों ही यदि इससे लड़ने लग जाएँ, तो जरासन्ध उसी समय आकर हमारे स्वजन तथा प्रजा जनों को मार डालेगा। ऐसा सोचकर भगवान श्रीकृष्ण ने समुद्र में एक द्वारका नाम की नगरी बनवा ली। ऐसी नगरी जिसके द्वार में ‘क’ ब्रह्म खड़ा हो, यानी जो मोक्ष का द्वार हो उसे द्वारका कहते हैं। पुराणों के अनुसार सात नगरियाँ मोक्षदायिनी मानी गयी हैं। पहली अयोध्या, दूसरी मथुरा, इन्हें तो सब जानते ही हैं। तीसरी है माया अर्थात् हरिद्वार। हरिद्वार को माया नगरी कहते हैं। उसके बाद चौथी नगरी है काशी। इस बात को भी सब जानते ही हैं कि जहाँ गंगा जी बहती हैं, जहाँ भगवान विश्वनाथ विराजमान हैं, उस काशी में जिसका मरण होता है, उसके कान में भगवान तारक मंत्र का उपदेश देते हैं और उसकी मुक्ति हो जाती है। पाँचवीं की कांची। कांची नगरी दक्षिण भारत में है। उसमें भी दो भाग हैं- विष्णुकांची और शिवकांची। छठी है उज्जैन, जो मध्य प्रदेश में है। इसे अवन्तिका कहते हैं, और सातवीं है द्वारक। वर्णन आता है कि लीला संवरण के समय भगवान ने अपनी द्वारका नगरी को समुद्र में डुबो दिया था। वर्तमान में जिस नगरी को द्वारका कहते हैं, वह दूसरी द्वारका है। पुरातत्त्व विभाग के लोग अब उस पूर्व की द्वारका की खोज में लगे हैं, उन्हें कुछ अवशेष मिल भी रहे हैं। द्वारका का निर्माण करके भगवान ने अपनी अचिन्त्य योग शक्ति से सारे स्वजनों को वहाँ पहुँचा दिया। मथुरा से उन्हें ले गये, क्योंकि मथुरा पर बार-बार आक्रमण हो रहे थे। भगवान ने अपनी द्वारका समुद्र में बसाई जिससे कि भविष्य में कोई आसानी से उस पर आक्रमण न कर सके। भगवान ने उसका वैभव वैकुण्ठ से भी अधिक बढ़ा दिया। जहाँ भगवान विराजते हों, वहाँ पर क्या कमी हो सकती है? |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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