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श्रीमद्भागवत प्रवचन -स्वामी तेजोमयानन्द
3.सूक्ष्म रूप का ध्यान
आगे कहते हैं, यदि विराट रूप का ध्यान न हो सके, तो भगवान का जो भी रूप आपको प्रिय लगता हो, गणेशजी, श्रीकृष्णजी, शिवजी अथवा श्री रामचन्द्रजी, उसी रूप में भगवान आपके हृदय मे विराजमान हैं। ऐसा ध्यान करें। ऐसी कल्पना करें।
अब यदि विष्णुजी का ध्यान करना हो, तो शुख-चक्र-गदा-पद्यधारी भगवान मेरे हृदय में विराजमान हैं, वे मंद-मंद मुस्कराते हुए मेरी ओर देख रहे है, ऐसा ध्यान करें। कोई कितना भी दुःखी क्यों न हो, यदि वह ऐसा ध्यान करें कि भगवान उसकी ओर देखकर मुस्करा रहे हैं, तो उसका दुःख भाग जाएगा, गायब हो जाएगा। इतना सरल उपाय है सुखी बनने का। या फिर श्रीकृष्ण जी का ध्यान कीजिए। भगवान यमुना किनारे खड़े हैं। उनके आस-पास गायें व बछडें हैं। मोर भी आकर नृत्य कर रहे हैं। जरा ऐसा ध्यान करके तो देखो। तो क्या होगा? मैं क्या बताऊँ ? आप करके देखिए। अब यदि कोई राम भक्त हो, तो वह ऐसी कल्पना करे कि मैं श्रीरामजी के चरणों में गिर पड़ा हूँ। भगवान मुझे उठाकर मेरा आलिंगन कर रहे हैं। क्या भगवान सिर्फ हमनुमान जी का ही आलिंगन कर सकते हैं; किसी और भक्त का नहीं कर सकते क्या? कहने का भाव है, अगर विराट का ध्यान नहीं कर सकते, तो भगवान का जो एक छोटा-सा रूप अपने हृदय में बैठा हुआ है, उसी का ध्यान करें। ध्यान करते-करते मन, प्रसन्न निर्मल हो जाएगा। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ 2.2.8
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