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श्रीमद्भागवत प्रवचन -स्वामी तेजोमयानन्द
11.वामन-अवतार
यह कथा बड़ी गंभीर है। भगवान के वचन सुनकर अदिति प्रसन्न हो गई। द्वादशी के दिन भगवान आविर्भूत हुए। वे शंख-चक्र-गदा-पद्म धारी रूप में प्रकट हुए। तब सारे देवता, मनु, पितर, सिद्ध, विद्याधर, यक्ष आदि सब प्रसन्न हो गए। दुंदुभियाँ शंख आदि सब बजने लगे। और सबके देखते-देखते ही भगवान ने अपना वह रूप त्याग कर छोटे-से ब्राह्मण वटु का रूप, वामन रूप धारण कर लिया।
भगवान तो नट है। उनको रूप बदलने में कितनी देर लगती है? तो वे छोटे-से वटु ‘वामन’ बन गए। देखो, वे जानते हैं कि उन्हें राजा बलि के पास माँगने के लिए जाना है। जिसे माँगना होता है उसे छोटा बनना पड़ता है। बोले चाहे वह परमात्मा की क्यों न हो, लेकिन जिसे माँगने के लिए जाना हो उसे छोटा बनना पड़ता है। ‘वामन’ अर्थात बहुत सुन्दर, तो ये वटु छोटे-से हैं और बड़े सुंदर है।
ऋषि मुनि उन्हें देखकर प्रसन्न हुए और जातकर्मादि जो संस्कार कराए जाते हैं, वह सब उन्होंने उसी समय करा दिये।
यज्ञोपवीत संस्कार के समय स्वयं सूर्य भगवान ने आकर उन्हें गायत्री मंत्र का उपदेश दिया। बृहस्पति जी ने ब्रह्मसूत्र दिया। कश्यप ऋषि ने मेखला दी। पृथ्वी माता ने कृष्णाजिन दिया। सोम (चन्द्रमा) जो वृक्षों के राजा हैं उन्होंने दण्ड दिया। देखो, वामन वटु की तैयारी हो रही है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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