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श्रीमद्भागवत प्रवचन -स्वामी तेजोमयानन्द
67.भौमासुर का उद्धार
तत्पश्चात् भौमासुर का प्रसंग आता है। उसी का नाम था नरकासुर। यद्यपि वह पृथ्वी देवी का ही पुत्र था, तथापि वह बड़ा भयंकर और महा अत्याचारी असुर था। उसने षोडश सहस्र (16000) से भी अधिक कन्याओं का अपहरण कर के उन्हें अपने महल में बन्दी बनाकर रख लिया था। उन कन्याओं की ओर से भगवान को निवेदन गया कि भगवान आप हमें इस असुर से छुड़ा लीजिए। भगवान सत्यभामा को साथ लेकर वहाँ जाते हैं। जब भगवान वहाँ पहुँचते हैं तो देखते क्या हैं कि वहाँ भौमासुर ने अनेक प्रकार की किलेबन्दी व अभेद्य दीवारें खड़ी कर रखी थीं। भगवान अपने सुदर्शन चक्र तथा अन्य आयुधों से उन सब को ढहाते हुए आगे बढ़ते चले जाते हैं। फिर भौमासुर के साथ उनका युद्ध होता है अन्त में भगवान उसे मार डालते हैं। इसलिए दीवाली के समय पहले लक्ष्मी पूजन करते हैं और फिर नरक चतुर्दशी के दिन लोग प्रातः शीघ्र उठकर स्नान करते हैं और आरती करते हैं क्योंकि उस दिन भगवान श्रीकृष्ण ने नरकासुर (भौमासुर) को मार डाला था। ये परम्पराएँ मालूम होनी चाहिए। नरकासुर का वध करके जब भगवान ने उन सोलह हजार कन्याओं को मुक्त किया, तब वे सब-के-सब भगवान से प्रार्थना करती हैं कि अब आप ही हमें आश्रय दें। हम आपकी ही शरण ग्रहण करती है। इसी कारण, तब उन सभी कन्याओं के साथ भगवान का विवाह हुआ। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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