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श्रीमद्भागवत प्रवचन -स्वामी तेजोमयानन्द
9.परीक्षित के प्रश्न
परीक्षित अब शुकदेव जी से पूछते हैं कि ब्रह्माजी ने नारदजी को इस ज्ञान का प्रचार करने के लिए कहा, तब उन्होंने यह ज्ञान किस-किस को सुनाया? श्रवण मात्र से भगवान हृदय में प्रकट हो जाते हैं और मन की अशुद्धि को धो डालते हैं। इसीलिए मैं यह सुब सुनना चाहता हूँ। ऐसा कह कर परीक्षित राजा ने प्रश्नों की लम्बी सूची रख दी, शुकदेवजी के सामने। किस प्रकार भगवान इस सृष्टि को बनाते हैं, उसका पालन करते हैं, और उसका लय करते हैं? कितने प्रकार के लोक हैं, लोकपाल है, देवता आदि है? काल किसको कहते हैं? काल के कितने प्रकार हैं? काल की कितनी गतियाँ हैं? कर्म कितने प्रकार के होते है? कर्म की कितनी गतियाँ हैं? उसी प्रकार, जो गुण और गुणी हैं उनके कितने नामरूप प्रकट होते हैं? ब्रह्माण्ड क्या है? उसका माप क्या है? उसकी सीमा क्या है? किस युग का धर्म क्या होता है? कितने अवतार हैं? उनकी कथाएँ क्या हैं? मनुष्य के लिए साधारण धर्म, विशेष धर्म क्या है? इसी प्रकार गृहस्थाश्रम, ब्रह्मचर्याश्रम, वानप्रस्थाश्रम और संन्यासाश्रम के क्या-क्या धर्म हैं? सांख्य क्या है? योग क्या है? वेद क्या है, स्मृति क्या है, पुराण क्या है, इतिहास क्या है, इष्टापूर्त क्या होता है? बन्ध क्या है, मोक्ष क्या है?
और कोई बात छूट गयी हो, तो उसे भी आप मुझे बताइये। कोई कहेगा अरे परीक्षित, इतनी बातें सुनने के लिए समय चहिए। तुम कुछ खा लो। परीक्षित कहते हैं- ‘न मेऽसवः परायन्ति ब्रह्मन्ननशनादमी।’[2]भूख और प्यास के कारण मेरे प्राण जाने वाले नहीं हैं। ब्राह्मण का शाप लग गया है, अतः अब तो तक्षक के काटने से ही प्राण जाएँगे। मैं आपके अमृतवचन सुन रहा हूँ, भगवान की अमृतमयी कथा सुन रहा हूँ इसलिए न तो मुझे भुख लग रही है, न प्यास। देखो, परीक्षित देह-गेह को भूल गए थे। कहते हैं- मुझे न खाना है, न पीना, अब और कुछ नहीं करना है, बस आप मुझे कथा सुनाते जाइए। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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