विषय सूची
श्रीमद्भागवत प्रवचन -स्वामी तेजोमयानन्द
1.मंगलाचरण
अब माहात्म्य के प्रसंग प्रवेश करते हैं। श्रीमद्भागवत में बारह स्कन्ध है, अठारह हजार श्लोक हैं। इसका पूर्ण रूप से विवेचन प्रायः असम्भव है। क्योंकि इस पर जितना विवेचन किया जाए वह कम ही है। यद्यपि श्रीमद्भागवत का प्रत्येक शब्द ही महत्त्वपूर्ण है, तथापि जो हमारे लिए उपयोगी है, जिसे सरलता से हम अपने जीवन में उतार सकते हैं हम उसी पर विचार करेंगे। सार की बात ग्रहण करनी चाहिए। यहाँ अनेक विषय तथा अनेक कथाएँ पुनः-पुनः दोहरायी गयी हैं, परन्तु हम तो सारतत्त्व ही ग्रहण करते चलेंगे।
यहाँ कहा हम सब भगवान श्रीकृष्ण को नमस्कार करते हैं। जब किसी को नमस्कार करने के लिए कहा जाता है, तो हम सोचते हैं कि नमस्कार क्यों करें? उनमें ऐसी क्या विशेषता है? जिसे हम बड़ा नहीं समझते उसे नमस्कार नहीं कर पाते। तो बोले- भगवान सच्चिदानन्द स्वरूप है, इसलिए। ‘होंगे! उससे हमें क्या मिला? तो कहा - केवल यही बात नहीं है ‘तापत्रय’ विनाशाय’ आधिदैविक आध्यात्मिक और आधिभौतिक - इस प्रकार हमारे कष्ट, ताप-संताप तीन प्रकार के होते हैं। आध्यात्मिक ताप- शरीर से, मन से होने वाली बीमारियाँ आध्यात्मिक ताप के अन्तर्गत आती हैं। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ भा. मा. 1.1
संबंधित लेख
क्रमांक | विवरण | पृष्ठ संख्या |
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज