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श्रीमद्भागवत प्रवचन -स्वामी तेजोमयानन्द
नवम स्कन्ध
नवम स्कन्ध का विषय है ‘ईशानुकथा’ यानी ईशकथा। नाम तो है ईशकथा, परन्तु इस नवम स्कन्ध में भगवान के भक्तों की ही कथा है। इसमें चौबीस अध्याय हैं जिनमें सूर्यवंश और चन्द्रवंश के राजाओं का वर्णन किया गया है। सारे राजाओं में कोई-न-कोई विशेषता थी। किसी में एक गुण प्रकर्षता से दिखाई देता था तो दूसरे में दूसरा गुण दिखाई देता था। सबका वर्णन हम विस्तार से नहीं देख सकते। परन्तु आगे जो यदुवंश का वर्णन आयेगा उसे विस्तार से देखेंगे। 1.अम्बरीष-चरित्रराजा परीक्षित ने मनु वंश का विस्तार जानना चाहा तो श्री शुकदेव जी कहते हैं- मनुवंश इतना बड़ा है कि जितना भी वर्णन करें वह पूरा नहीं होगा। अतः तुम उसे संक्षेप में सुनो। कुछ एक राजाओं की कथा यहाँ बताते हैं। मनु पुत्र राजा शर्याति की कन्या का नाम था सुकन्या। उसका विवाह च्यवन ऋषि के साथ हुआ था। उसके बाद-
नाभाग का पुत्र हुआ अम्बरीष। राजा अम्बरीष की कथा बड़ी सुन्दर और प्रसिद्ध है। राजा परीक्षित इसको विस्तार से जानना चाहते हैं। राजा अम्बरीष बड़े महाभागवत हुए। दुर्वासा ऋषि जैसे व्यक्ति का शाप-ब्रह्मशाप भी उन्हें नहीं लगा, इनका स्पर्श तक नहीं कर पाया। राजा अम्बरीष विष्णु जी के बड़े भक्त थे, महान् वैष्णव थे। सप्तद्वीपों के राजा होते हुऐ भी वे स्वयं मंदिर में जाकर झाडू लगाते थे और भगवान की सब प्रकार से सेवा और पूजा करते थे, नौकरों से नहीं कराते थे। हमारी पूजा तो प्रायः औरों के लिए आदेश ही हुआ करती है। तुम फूल लेकर आओ, तुम माला बनाओ, तुम पानी लेकर आओ इत्यादि। परन्तु राजा अम्बरीष तो भक्तिपूर्वक स्वयं ही सभी कार्य करते थे और एकादशी का व्रत रखते थे। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ 6.4.13
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