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श्रीमद्भागवत प्रवचन -स्वामी तेजोमयानन्द
34.नन्दबाबा को वरुण लोक से लौटा कर लाना
अब इसके बाद एक बार नन्दबाबा एकादशी व्रत करते हैं। द्वादशी के मुहूर्त पर स्नान करने लिए रात के समय वे जल में प्रवेश करते हैं। रात के समय को आसुरी बेला मानते हैं। ऐसे समय वे नहाने के लिए गए तो वरुण देवता के सेवकों ने उन्हें पकड़ लिया और वे उन्हें वरुण देवता के पास ले गए। जब व्रजवासियों ने देखा कि नन्दबाबा कहीं दीख नहीं रहे हैं, तो वे कहने लगे, “अरे नन्दबाबा किधर गये, नन्दबाबा किधर गये?” जब वे कहीं नहीं मिले, तो घबरा कर वे सब कृष्ण बलराम से कहने लगे-आप ही उन्हें बचा सकते हैं। सुनते ही भगवान को सब पता चल गया। भगवान यमुना जी में प्रवेश करते हैं और नीचे, वरुण लोक में जाते हैं। भगवान को देखकर वरुण देवता उनके चरणों में वन्दन करते हैं उनका पूजन अर्चन करते हैं। फिर कहते हैं, “आपके दर्शन पा कर आज मैं धन्य हो गया। मेरे सेवक बड़े मूर्ख है। जड़ता वश ये आपके पिताजी को ले आये हैं। आप हम सब को क्षमा कर दीजिए।”
“आप हमारे लिए पिता के समान हैं। अपने पिताजी के ऊपर आपका बड़ा प्रेम है। आप उन्हें ले जाइये।” भगवान नन्दबाबा को ले आते हैं। उस समय वहाँ सारे व्रजवासी इकट्ठे हो गए थे। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ 10.28.8
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