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श्रीमद्भागवत प्रवचन -स्वामी तेजोमयानन्द
31.गोप-बालों द्वारा ब्राह्मणों से अन्न की याचना
एक दिन भगवान गोपबालों के साथ वन में जा रहे थे। पेड़-पौधों की ओर देखकर कहते हैं देखो, ये पेड़ कितने परोपकारी हैं। धूप में, गर्मी में तथा पानी में ये तप करते रहते हैं और जब फल आते हैं तो उन्हें ये दूसरों को दे देते हैं। बोले, इन पेड़ों का स्वभाव भी साधु लोगों जैसा ही है। वृन्दावन के पेड़ों की तारीफ करते हुए, वे उस दिन वृन्दावन में बड़ी दूर निकल गए। चलते-चलते यमुना जी के तट पर पहुँच गए। वहाँ सबने यमुना जी का मधुर जल पिया। तब किन्हीं ग्वालबालों ने बलराम तथा कृष्ण से कहा-
बलराम जी, कृष्ण जी हमें भूख लगी है, तुम दोनों कुछ उपाय करो, हमारी क्षुधा को तृप्त करो। देखो, गोपबालों का जीवन भगवान पर कितना निर्भर था, आप सोच लें! बिल्कुल निर्भरा भक्ति है यह। भूख लगी है तो भी कृष्ण-कृष्ण महाबाहो, संकट आया तो भी कृष्ण-कृष्ण महाबाहो हर चीज के लिए इनका जीवन भगवत केन्द्रित था। यहाँ यही दिखाया जा रहा है। भगवान ने कहा, “भूख लगी है? अच्छा चलो बैठ जाओ, सोचते हैं कि क्या करें।” फिर कहते हैं- यहाँ से थोड़ी दूरी पर बहुत सारे ब्राह्मण यज्ञ कर रहे हैं, यज्ञ में दान तो किया ही जाता है। अन्नदान भी करना चाहिए। तुम लोग जाओ और उनसे कहो कि हमें कृष्ण और बलराम ने भेजा है। वे वहाँ बैठे हैं, आप उनके लिए अन्न दीजिए। अब देखो! |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ 10.23.1
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