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श्रीमद्भागवत प्रवचन -स्वामी तेजोमयानन्द
11.पूतना-मोक्ष
तब तक कंस की आज्ञा से शिशुओं को मारने वाली ‘पूतना’ नामक क्रूर राक्षसी गोकुल में नन्दबाबा के घर पहुँच गई थीं। यह पूतना खेचरी है, आकाश में विचरण करने वाली है। पूतना शब्द का अर्थ है- ‘पूतना’ जो पूत नहीं है, पवित्र नहीं है, अपवित्र है। ध्यान रखना ये भगवान श्रीकृष्ण की लीलाएँ हैं। वैसे, स्थूल दृष्टि से तो यही लगता है कि भगवान एक-एक कर सारे असुरों को मारते चले जा रहे हैं। लेकिन, भगवान की लीला का एक ही अर्थ नहीं होता। आध्यात्मिक दृष्टि से देखने पर उसके अनेक अर्थ प्रकट होते हैं। जरा सोचो, रामावतार में भी सबसे पहले भगवान ने ताड़का का वध किया, एक स्त्री का वध किया। यहाँ कृष्णावतार में भी सबसे पहले पूतना वध है। अवतार ले कर पहले स्त्री को मारते हैं। यह क्या बात हुई? यह पूतना अविद्या रूप है। देखो, हमारा सारा दुःख अविद्या और अविद्या से उत्पन्न अनेक आसुरी वृत्तियों के कारण ही है। इन्हें हम एक-एक कर के देखते जाएँगे। पहले अविद्या, क्योंकि वह सबकी जननी है, सबका कारण है इसी प्रकार ताड़का-अविद्या, दुराशारूप है। इसीलिए रामावतार में भी पहले ताड़का वध आता है। अविद्या रूपी पूतना गोकुल में आती है। वहाँ उसने देखा कि नन्दबाबा के घर बड़ा उत्सव मनाया जा रहा है और वहाँ पर नीले रंग का एक छोटा-सा बालक है।
उसका तेज छिपा हुआ है। मानो ऊपर राख हो और राख के अन्दर कोई अँगारा धधक रहा हो, ऐसा वह बालक है। पूतना ने सोचा कि यहाँ सब लोगों का ध्यान इसी बच्चे में लगा हुआ है, मैं इस बच्चे को कैसे ले सकती हूँ? इसीलिए वह अत्यन्त सुन्दर मायावी स्त्री का रूप धारण कर के वहाँ जाती है। और देखो कैसी है यह माया? |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ 10.6.7
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