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श्रीमद्भागवत प्रवचन -स्वामी तेजोमयानन्द
5.प्रह्लाद जी पर हिरण्यकशिपु का अत्याचार
दोनों गुरुपुत्र मरकर नीचे गिर पड़े। प्रह्लाद को बड़ा दुःख हुआ। वे आँखें बंद करते हैं उनकी आँखों से आँसू गिरते हैं। हाथ जोड़कर कहते हैं, ”भगवान! मेरे मन में इन गुरुओं के प्रति कभी भी द्वेष का भाव नहीं आया हो तो ये जाग जाएँ।“ तब क्या हुआ मालूम है? वे दोनों उठकर बैठ गए, जैसे नींद से जागे हों। यह प्रह्लाद की शक्ति थी। ऐसे उनके गुण थे। ‘गुरुषु ईश्वरभावनः’ भले ही वे (गुरु) जैसे भी हों। देखो, पिता जी से उन्होंने (प्रह्लाद ने) कभी गलत बात नहीं की। लेकिन, पिता जी वैसे थे, तो भी ठीक है। प्रह्लाद की भक्ति उनके प्रति भी कभी कम नहीं हुई, गुरु के प्रति भी कम नहीं हुई। लेकिन उनकी गलत बात को वे नहीं मानते। हिरण्यकशिपु ने कहा - यह मरता तो है नहीं। ले जाओ इसे, अब और क्या करें, प्रयत्न करके देख ही सकते हैं। अब बताओ! बिगाड़ने को ये लोग सुधारना कहते हैं। ये चाहते हैं वह बिगड़ जाए। तो शण्डामर्क उनको ले गये। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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