गर्ग संहिता
गोलोक खण्ड : अध्याय 15
श्री बहुलाश्व ने पूछा- महामुने ! शिशुरूपधारी उन सनातन पुरुष भगवान श्रीहरि ने बलराम जी के साथ कौन-कौन-सी लीलाएँ कीं, यह मुझे बताइये। श्री नारद जी ने कहा- राजन ! एक दिन वसुदेवजी के भेजे हुए महामुनि गर्गाचार्य अपने शिष्यों के साथ नन्दभवन में पधारे। नन्द जी ने पाद्य आदि उत्तम उपचारों द्वारा मुनिश्रेष्ठ गर्ग की विधिवत पूजा की और प्रदक्षिणा करके उन्हें साष्टांग प्रणाम किया। नन्दजी बोले- आज हमारे पितर, देवता और अग्नि सभी संतुष्ट हो गये। आपके चरणों की धूलि पड़ने से हमारा घर परम पवित्र हो गया। महामुने ! आप मेरे बालक का नामकरण कीजिये। विप्रवर प्रभो ! अनेक पुण्यों और तीर्थों का सेवन करने पर भी आपका शुभागमन सुलभ नहीं होता। श्री गर्गजी ने कहा- नन्दराय जी ! मैं तुम्हारे पुत्र का नामकरण करूँगा, इसमें संशय नहीं है; किंतु कुछ पूर्वकाल की बात बताऊँगा, अत: एकांत स्थान में चलो। श्री नारद जी कहते हैं- राजन ! तदनन्तर गर्ग जी नन्द यशोदा तथा दोनों बालक श्रीकृष्ण एवं बलराम को साथ लेकर गोशाला में, जहाँ दूसरा कोई नहीं था, चले गये। वहाँ उन्होंने उन बालकों का नामकरण संस्कार किया। सर्वप्रथम उन्होंने गणेश आदि देवताओं का पूजन किया, फिर यत्नपूर्वक ग्रहों का शोधन (विचार) करके हर्ष से पुलकित हुए महामुनि गर्गाचार्य नन्द से बोले। गर्गजी ने कहा- ये जो रोहिणी के पुत्र हैं, इनका नाम बताता हूँ- सुनो। इनमें योगीजन रमण करते हैं अथवा ये सब में रमते हैं या अपने गुणों द्वारा भक्त जनों के मन को रमाया करते हैं, इन कारणों से उत्कृष्ट ज्ञानीजन इन्हें ‘राम’ नाम से जानते हैं। योगमाया द्वारा गर्भ का संकर्षण होने से इनका प्रादुर्भाव हुआ है, अत: ये ‘संकर्षण’ नाम से प्रसिद्ध होंगे। अशेष जगत का संहार होने पर भी ये शेष रह जाते हैं, अत: इन्हें लोग ‘शेष’ नाम से जानते हैं। सबसे अधिक बलवान होने से ये ‘बल’ नाम से भी विख्यात होंगे।[1] |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ - रमन्ते योगिनी ह्यस्मिन् सर्वत्र रमतीति वा ।। गुणैश्च रमयन् भक्तां स्तेमन रामं विदु: परे ।
गर्भसंकर्षणादस्ये संकर्षण इति स्मृत: ।। सर्वावशेषाद् यं शेषं बलाधिक्यांद् बलं विदु: (गर्ग0, गोलोक0 15। 25-26½)
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