गर्ग संहिता
विश्वजित खण्ड : अध्याय 12
उशीनर आदि देशों पर प्रद्युम्न की विजय तथा उनकी जिज्ञासा पर मुनिवर अगस्त्य द्वारा तत्वज्ञान प्रतिपादन वह राजाओं से उसी प्रकार शोभा पाती थी, जैसे सर्पों से भोगवतीपुरी। चम्पावती के स्वामी वीर राज हेमांगद शीघ्र ही भेंट लेकर आये। उन्होंने श्रीकृष्णकुमार प्रद्युम्न ने उन्हें केसरयुक्त कमलों की माला दी और सहस्त्रदलों की शोभा से सम्पन्न एक दिव्य कमल भी अर्पित किया ।तदनन्तर महाबाहु प्रद्युम्न धनुष धारण किये तथा बार-बार दुन्दुभि बजवाते हुए अपनी सेना के साथ विदर्भ देश को गये। कुण्डिनपुर के राजा भीष्म ने वहाँ पधारे हुए रुक्मिणीपुत्र को अपने घर ले आकर बहत धन दे, सेना सहित उनका पूजन किया। पश्चात नाना को प्रणाम करके बलवान यादवेश्र रुक्मिणीनन्दन कुन्त और दरद देशों को गये। मार्ग में मलचाचल के चन्दन को स्पर्श करता हुआ समीर उनकी सेवा कर रहा था। श्रीखण्ड और केत की पुष्पों की गन्ध से भरे हुए मलचायल पर उन्होंने मुनिश्रेष्ठ अगस्त्य का दर्शन किया, जो किसी समय महासागर को पी गये थे। श्रीकृष्ण कुमार दोनों हाथ जोड़कर उन महामुनि को नमस्कार करके उनकी पर्णशाला में खडे़ हो गये। मुनि ने शुभाशीर्वाद देकर उनका अभिनन्दन किया । तब श्रीप्रद्युम्न ने पूछा- मुनिश्रेष्ठ ! यह जगत तो दृश्य पदार्थ होने के कारण मिथ्या है[1] फिर सत्य की भाँति कैसे स्थित है ? तथा जीव ब्रह्मा का अंश होने के कारण नित्य मुक्त हैं, ऐसा होने पर भी यह गुणों से कैसे बंध जाता है ? यह मेरा प्रश्न है, आप इसका भलीभाँति निरूपण कीजिये क्योंकि आप सर्वज्ञ, दिव्यदृष्टि से सम्पन्न तथा समस्त ब्रह्मवेताओं में श्रेष्ठ हैं |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ जगत् के मिथ्यात्व का साधक अनुमान-प्रमाण इस प्रकार है- जगत् असत्, दश्यमानत्वात् स्वप्नदृष्टपदार्थवत्
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